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________________ काम । एक मिनिट की भी आलस करे बगैर साहित्य का सर्जन। आचार्य देवचन्द्रसूरीजी शिष्य परिवार के साथ विहार करते करते नागपुर पहुंचे। यहाँ नागपुर में धनद सेठ नामक एक खूब ही धनवान सेठ बसता था। उनके पास बहुत धन था। सुन्दर परिवार था। धन मुसीबत के समय काम में आये ऐसे विचार से चरु में सुवर्ण कव्य भरकर चरु जमीन में गाढ़े थे। कर्मसंयोग से व्यापार में खूब घाटा गया। व्यापार में घाटा हुआ तो सेठ ने गाढा हुआ धन निकालने के लिये सोचा । चरु जमीन से निकालने पर चरु में से सोने की ईंटो के बजाय कोयले ही हाथ लगे। सेठ को यह घाव बड़ा बुरा लगा। वे अत्यंत गरीबी में रहने लगे। स्त्रियों के गहने बेचे। अपनी हवेली के सिवा दूसरी जो भी कोई सम्पत्ति थी वह बेच डाली। चरु में से निकले कोयले का ढेर हवेली के कम्पाउण्ड के एक कौने में रखा। एक दिन सोमचन्द्र मुनि अन्य एक मुनि के साथ गोचरी के लिये सेठ की हवेली पर पधारे । सेठ व उनका कुटुम्ब आटा भीगोकर बनायी हुई राब पी रहा था। यह देखकर सोमचन्द्र मुनि ने अन्य मुनि को कहा, 'यह सेठ क्यों ऐसा आहार कर रहे हैं? वे तो खूब धनवान है। देखो उस कौने में सुवर्ण का ढेर पडा है।' सेठ ने इसमें से कुछ सुन लिया। बराबर तो समझ में आया नहीं परंतु दूसरे जो मुनि थे उनको पूछा, 'यह महाराज क्या कहते हैं?' दूसरे मुनि ने कहा, 'ये तो हमारे बीच की बातें थी।' परन्तु सेठ ने 'सुवर्ण' शब्द सुना था इसलिये उन्होंने आग्रह किया।महाराज ने पूछा, 'आप धनवान होने पर भी गरीब के भाँति क्यों रहते हो?' सेठ ने अपनी कथनी सुनायी। मुनि सोमचन्द्र ने कहा, 'यह ढेर कोयले का नहीं सुवर्ण का ही है।' और सेठ का हाथ पकडकर उस ढेर के समीप ले गये। सेठ को अभी भी कोयले ही नजर आ रहे थे। उन्होंने कहा, 'ये तो कोयले ही है।' मुनि ने कहा, 'नहीं... नहीं...। यह तो सुवर्ण ही है। सेठ ने कहा, 'गुरुदेव! आप अपने कर कमलों से इस ढेर को पावन करें जिससे वह मुझे सुवर्ण दीखे। गुरु ने नवकार मंत्र पढकर ढेर पर हाथ रखा और सेठ ने आश्चर्य के साथ सुवर्ण देखा। उन्होंने सोमचन्द्र मुनि का उपकार माना और उनके पीछे पीछे उपाश्रय गये। ___ वहाँ जाकर आचार्यश्री को कहा, 'यह धन अब मेरा नहीं है। श्री सोमचन्द्र मुनि के प्रभाव से यह धन जो कोयलेरूप था वह मुझे मिला है।' ___ आचार्यश्री ने सेठ को रास्ता दिखाया। उस धन को एक सुन्दर प्रभु महावीर जिन शासन के चमकते हीरे • २४८
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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