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________________ कहा : 'हे कन्या ! मेरा चरित्र सून, मैं वैताढ्य पर्वत पर के मणिपुर नगर का विद्याधर राजा मणिचूड हूँ। एक दिन नगरचर्चा देखने में रात्रि को निकला। वहाँ उत्तम श्लोक सूना कि सर्व स्थानों पर कौएँ काले होते हैं और तोते हरे होते हैं। सुखी पुरुष को सुख मिलता है और दुःखी को दुख मिलता है। यह सच्चा है या झूठा- ऐसे विचार से मैं विद्या के बल से कोढी का रूप लेकर नगर में खडा रहा था। राजा के सेवक मुझे पकडकर राजसभा में ले गये। हे सुंदरी ! वहाँ तू मुझ से ब्याही, परंतु उसका कारण मैं जानता नही हूं, तुझको दुःख उत्पन्न करनेवाली परीक्षा भी ली, परंतु जिस प्रकार मेरुशिखर कम्पित नहीं होता है उस प्रकार तू शीलरूप आचार से कम्पित नहीं हुई । इसलिये तू धन्य है, प्रशंसा - योग्य है। मैं भी तूझसे ब्याह करके अपने आपको धन्य मानता हूं।' विद्याधर के ऐसे वचन सुनकर मदीरावती विचारने लगी। शील के प्रभाव से मुझे उत्तम पति मिला। तत्पश्चात् विद्याधर ने अपनी शक्ति से सात मंजिल का महल बनाकर रात्रि बीताई। सूर्योदय होते ही विद्याधर ने रानी को पूछा: 'तेरे पिता को मैं यहाँ भक्ति से बुलवाऊँ या शक्ति से ?' रानी ने कहा, 'उनको किसान के भेष में बुलाओ जिससे उन्का मद उतर जावे ।' विद्याधर राजा ने एक बड़े सैन्य के साथ एक दूत को रिपुमर्दन राजा के पास भेजकर कहलवाया कि वैताढ्य पर्वत का राजा मणिचूड विद्याधर आपके पर चढ़ आया है। यदि आप राज्य चाहते हो तो किसान के भेष में आकर उन्हें नमस्कार करो।' राजा क्रोध से उत्तर देने जा ही रहा था कि प्रधानने उसे रोककर कहा, 'बराबरी के हो तो कोप करना ठीक है लेकिन यह विद्याधर राजा अति बलवान है। उन्हें नमस्कार योग्य - सत्कारपूर्वक नमस्कार करें ।' मंत्रियों को के कहे अनुसार राजा ने किसान के भेष में जाकर विद्याधर राजा को शीश झुकाया । विद्याधर ने राजा का वस्त्रालंकार से सत्कार किया। अपनी पुत्री को विद्याधर के पास देखकर उसे बहुत खेद हुआ तब पुत्री ने कहा, 'जिस कोढी के साथ आपने मेरा ब्याह किया था वही यह पुरुष है। उसने ही आपके शरीर पर से किसान का वेष उतारकर नये वस्त्रालंकार दिये हैं।' यह सुनकर विस्मित बने राजा ने विद्याधर को कहा, 'आपका चरित्र जो हो वह कहो।' विद्याधर ने अपना चरित्र कहा और बोला, 'हे राजन्! आपकी पुत्री उत्तम शीलवती होने से आपको धन्य है।' ऐसा कहकर अपनी समृद्धि दिखाई और राजा का सन्मान करके विद्याधर मदिरावती को लेकर वैताढ्य पर्वत पर गया। वहाँ मदिरावती शील के प्रभाव से विविध प्रकार के भोग भोगती हुई जीनधर्म की आराधना करने लगी और आराधना के योग से मृत्यु पाकर देवलोक में गयी। वहाँ से च्यव कर मनुष्यभव में आयी, सकल कर्म का क्षय करके मोक्ष जायेगी । जिन शासन के चमकते हीरे • २४०
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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