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________________ क्योंकि धन ही मनुष्यों का वशीकरण है।' अशोक ने कहा, 'यदि कार्य सिद्ध हो जायेगा तो अर्ध लक्ष द्रव्य दूंगा।' इससे मालन संतुष्ट होकर शियलवती के पास गई और शियलवती को सब वृत्तांत बताया। शियलवती ने मन में सोचा, परस्त्री के शील काखण्डन करने की इच्छा रखनेवाला यह पुरुष अपने पाप का फल भोगे।' ऐसा मानकर उसने मालन की बात स्वीकार कर ली और मालन से अर्धलक्ष द्रव्य माँगा। मालन ने वह देना स्वीकार किया। इसलिये मिलने का दिन तय किया। तत्पश्चात् शियलवती ने अपनी बुद्धि से विचार करके घर के एक कमरे में कुँए जितना गहरा खड्डा खुदवाया। उसके उपर निवार बिना की चारपाई रखकर उपर चादर बांधकर ढीला रखा। मिलने का समय होते ही अशोक मंत्री अपनी आत्मा को कृतार्थ मानकर अर्धलक्ष्य द्रव्य लेकर वहाँ आया। पूर्व से सिखाई हुई दासी ने कहा, 'लाया हुआ द्रव्य मुझे दीजिये और अन्दर चारपाई पर जाकर बैठो।' अशोक अर्ध लक्ष्य द्रव्य देकर जल्दी अंधेरे कमरे में जाकर चारपाई पर बैठा, संसार में बहुकर्मी प्राणी गिरते हैं उस प्रकार तुरंत ही खड्डे में गिरा। खड्डे में पड़ा अशोक जब क्षुधातुर होता तब उपर से शियलवती खप्पर पात्र में अन्नपानी देती थी और इस प्रकार बहुत दिन रहने से अशोक में से 'अ' निकल गया और मंत्री शोक रूप बन गया। एक माह बीतने पर भी अशोक मंत्री वापिस न लौटा तो कामांकुर नामक दूसरा मंत्री वैसी ही प्रतिज्ञा लेकर आया। शियलवती ने उसके पास से भी अर्धलक्ष द्रव्य लेकर उसी खड्डे में डाल दिया। तत्पश्चात् एक माह बाद ललितांग नामक एक तीसरा मंत्री आया । उसने भी अर्ध लाख द्रव्य लेकर उसी खड़े में डाल दिया। चौथे माह रतिकेली नामक एक मंत्री आया, उसको भी सबके भांति लक्ष द्रव्य लेकर एक खड्डे में डाला। इस प्रकार चारों मंत्री चतुर्गतिरूप संसार में दुःख का अनुभव करने लगे। ___कालक्रमानुसार राजा शत्रु पर विजय पाकर वापिस लौटा और बड़े उत्सव के साथ उसने नगरप्रवेश किया। उस समय उन मंत्रियों ने शियलवती को कहा, 'हे स्वामीनी! हमने आपका माहात्म्य देखा, हमारे कृत्य का फल भी भोगा, अब हमें बाहर निकालो।' शियलवती ने कहा, 'जब मैं भवत' (हो) कहूँ तब आप सबको 'भगवतु' कहना पड़ेगा। मंत्रियों ने वह स्वीकृत किया। तत्पश्चात् शियलवती ने अपने पति को कहकर राजा को भोजन का आमंत्रण दिया। अगले दिन सर्व भोजनसामग्री तैयार करके खड्डेवाले कमरे में रखी। राजा के भोजन करने आने के दिन रसोईघर जिन शासन के चमकते हीरे • १९८
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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