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________________ के प्रभाव से प्रद्योत राजा का वैर शांत हो गया सो उसने मृगावती के पुत्र उदयन ने कौशांबीनगरी का राजा बनाया और मृगावती को दीक्षा लेने की आज्ञा दी। तत्पश्चात् मृगावती ने प्रभु से दीक्षा ली। उसके साथ अंगारवती वगैरह राजा की आठ स्त्रियों ने भी दीक्षा ली। प्रभु ने कइयों को शिक्षा देकर उन्हें चंदना साध्वी को सौंप दिया। उन्होंने साध्वी चन्दनबाला की सेवा करके सर्व जानकारी पाली। भव्यजनों को प्रतिबोध करते हुए श्री वीर भगवंत फिर से कौशांबी नगरी में पधारे। दिन के आखिरी प्रहर पर चन्द्र, सूर्य शाश्वत विमान में बैठकर प्रभु को वंदना करने आये, उनके तेज से आकाश में उद्योत हुआ देखकर लोग कौतुक से वही बैठे रहे। रात्रि जानकर अपने उठने का समय जानकर चंदना साध्वी अपने परिवार के साथ वीर प्रभु को वन्दना करके उपाश्रय पहुँच गयी, लेकिन मृगावती सूर्य के उद्योत के तेज के कारण दिन के भ्रम से रात्रि हुई जानी नहीं। इससे वह वहाँ ही बैठी रही। तत्पश्चात् जब सूर्य-चन्द्र चले गये तब मृगावती ‘रात्रि हो गई' जानकर कालातिक्रमण के भय से चकित होकर उपाश्रय पर आयी। चन्दना ने उसको कहा, 'अरे! मृगावती! तेरे जैसी कुलीन स्त्री को रात्रि में अकेला रहना शोभा देता है?' ये वचन सूनकर मृगावती चन्दना से बार बार क्षमापना करने लगी इस प्रकार शुभ भाव से घाती कर्मों के क्षय से मृगावती को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। उस समय निद्रावश बनी हुई चन्दना के समीप से एक सर्प जा रहा था। उसे केवलज्ञान की शक्ति से देखकर मृगावती ने उनका हाथ संथारे पर से उठा लिया, इससे चन्दना ने जागकर पूछा कि 'मेरा हाथ तूने क्यों उठाया?' मृगावती बोली, 'यहाँ से एक बड़ा सर्प जा रहा था।' चन्दना ने पूछा, 'अरे मृगावती! ऐसे अंधेरे में तूने सर्प को किस प्रकार देखा? उसका मुझे आश्चर्य होता है।' मृगावती बोली, 'हे भगवती सती! मुझे उत्पन्न हुए केवलज्ञान चक्षु से उसको मैंने देखा। यह सुनकर वह बोल उठी : 'अरे केवली की आशातना करनेवाली एसेमें - मुझे धिक्कार है !' इस प्रकार अपनी आत्मा की निंदा करने से चंदना को भी केवलज्ञान हुआ। नोट : मृगावती के केवलज्ञान का ब्यौरा चंदनबाला के चरित्र में आ चुका है फिर भी रसक्षति न हो इसलिए वह यहाँ दुबारा आलेखित किया गया है। जिन शासन के चमकते हीरे . १९४
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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