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पर लांछन देखकर राजा एकदम क्रोधित हुआ और मन से सोचा, 'जरूर इस पापी चित्रकार ने मेरी पत्नी को भ्रष्ट की हो ऐसा लगता है, नहीं तो वस्त्र के भीतर के लांछन को वह किस प्रकार जान सका?' ऐसा मानकर कोप करके उसका दोष बताकर उसे पकड़कर रक्षकों के स्वाधीन किया। उस समय दूसरे चित्रकारों ने मिलकर राजा को कहा, 'हे स्वामी! यह चित्रकार कोई यक्ष देव के प्रभाव से एक अंश देखकर पूर्ण स्वरूप यथार्थ रूप से आलेखित कर सकता है। इसलिये इसका कोई अपराध नहीं है।' उसके ऐसे वचन से क्षुद्र चित्तवाले राजा ने उस उत्तम चित्रकार की परीक्षा करने के लिये एक कुबडी दासी का मात्र मुख दिखाया। उस पर से चतुर चित्रकार ने उसका यथार्थ स्वरूप आलेखित कर दिखाया। यह देखकर राजा को भरोसा हुआ लेकिन ईर्ष्या हुई, जिससे क्रोध हुआ और चित्रकार के दाये हाथ का अंगूठा उसने कटवा डाला।
उस चित्रकार ने यक्ष के पास जाकर उपवास किया। यक्ष ने उसे कहा, 'तु बाँये हस्त से भी वैसे चित्र अंकित कर पायेगा' - ऐसा वरदान दिया।
__ चित्रकार ने क्रोध से सोचा कि, 'शतानिक राजा ने मुझ निरपराधी की ऐसी दशा की, इसलिये कोई उपाय से उसका बदला ले लूं।' ऐसा सोचकर एक पट्ट पर विश्वभूषण मृगावती देवी को अनेक आभूषणों सहित अंकित किया, तत्पश्चात् स्त्री-लंपट और प्रचण्ड ऐसे चण्डप्रद्योत राजा के पास जाकर वह मनोहर चित्र दिखाया।उसे देकर चंद्रप्रद्योत बोला : हे उत्तम चित्रकार! तेरा चित्रकौशल्य वाकई विधाता जैसा ही है - ऐसा मैं मानता हूँ। ऐसा स्वरूप इस मनुष्यलोक में पूर्व कहीं देखने में आया नहीं हैं । हे चित्रकार ! ऐसी स्त्री का है। वह मुझे सचमुच बता दे तो मैं तुरंत उसे पकड़ ले आऊँ, क्योंकि ऐसी स्त्री किसी भी स्थान पर हो तो वह मेरे लायक है।' राजा के ऐसे वचन सुनकर, 'अब मेरा मनोरथ पूरा होगा' - ऐसा मानकर चित्रकार ने हर्षित होकर कहा, 'हे राजा!कौशांबी नगरी में शतानिक नामक राजा है। उसकी मृगावती नामक यह मृगाक्षी शेर जैसे पराक्रमी राजा की पटरानी है। उसका यथार्थ रूप आलेखित करने विश्वकर्मा भी समर्थ नहीं है। मैंने तो इसमें थोडारूपमात्र आलेखित किया है। चण्डप्रद्योत ने कहा, 'मृग को देखकर शेर जिस प्रकार मृगनी ग्रहण करता है उस प्रकार मैं शतानिक राजा के सामने उस मृगावती को ग्रहण करूंगा। यद्यपि राजनीति अनुसार उसकी मांग करने के लिए प्रथम दूत भेजना ही योग्य है, जिससे मेरी आज्ञा माने तो कुछ भी अनर्थ नहीं होगा।'
जिन शासन के चमकते होरे . १८९