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________________ ७३ -जितशत्रु और सुकुमालिका चम्पापुरी में जितशत्रु नामक राजा राज्य करते थे, उन्हें सुयोग्य नामवाली सुकुमालिका नामक रानी थी। राजा जितशत्रु उस पर इतना आसक्त था कि वह राज्यादिक की भी चिंता करता नहीं था। राजा के इस प्रकार के आचरण से मंत्री वर्ग ने राजा को स्त्री सहित मदिरापान कराकर अरण्य में छोड़ दिया और उसके पुत्र को राजगद्दी पर बिठाया। मदिरा का नशा उतरने के बाद राजा-रानी दोनों सोचने लगे, 'अरे! हम यहाँ कहाँ से? हमारी कोमल शय्या कहाँ गयी? हमारे राज्यवैभव का क्या हुआ। ऐसा सोचकर दोनों वहाँ से आगे बढ़े थोड़ी दूर चले तो कुसुमालिका को प्यास लगी। उसका कण्ठ और तालू सूख चूके थे। उसने राजा को कहा, 'स्वामी! मुझे जीवित रखने के लिए कहीं से जल ला दो।' राजा जल लेने गया मगर कहीं पर जल देखने में नहीं आया। पश्चात् पलाश वृक्ष के पत्तों का दोना बनाया, उसमें अपने बाहु की नस में से रुधिर निकाल कर भरा। वह दोना रानी के पास लाकर कहा, 'प्रिये! इस डबरे का जल अति मलिन है, उसे आंख बंध करके पी जा।' रानी ने वैसा करके पान किया। कुछ देर के बाद वह बोली, 'स्वामी! मुझे बहुत भूख लगी है।' राजा कुछ दूर जाकर अपनी जांघ का माँस काटकर उसे अग्नि में पकाकर रानी के पास रखा और पक्षी का माँस कहकर उसे खिलाया। क्रमानुसार वहाँ से किसी देश में जाकर अपने आभूषणों को बेचकर कुछ व्यपार करके राजा उसका पोषण करने लगा। एक बार रानी ने कहा, 'स्वामी! जब आप व्यापार करने बाहर जाते हो तंब मैं अकेली घर में नहीं रह पाती हूँ।' ऐसे वचन सुनकर राजा ने एक पंगु मनुष्य को चौकीदार के रूप में घर पर रखा। पंगु मनुष्य का कण्ठ बड़ा मधुर था। इस कारण उस पर मोहित होकर रानी ने उसको स्वामी स्वीकार लिया, तब से सुकुमालिका अपने पति जितशत्र को मारने के विचार करने लगी। एक बार राजा रानी को लेकर बसंतऋतु में जलक्रीडा करने के लिये गंगा तट पर गये राजा ने मद्यपान किया। जिन शासन के चमकते हीरे . १८३
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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