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________________ से बाहर निकाल दिया। वहाँ से निकलकर वह अपने पिता के घर आयी, लेकिन वहाँ भी कलंकित जानकर उसे वहाँ रहने न दिया। इस कारण मात्र एक दासी के साथ वन में भटकने लगी। पूर्ण मास बीतने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया, और मृगबाल की भाँति उसका पालन करने लगी। एक बार दासी जल लेने गई थी, वहाँ उसने मार्ग में एक मुनि को कायोत्सर्ग में खडे देखा। उसने अंजना को वह बात बताई, इसलिए अंजना उनके पास पास जाकर नमस्कार करके बैठी। कायोत्सर्ग पूर्ण करके मुनि ने धर्मदेशना दी। वह सुनकर अंजना ने अपने पर पडे दुःख का कारण पूछा ।मुनि ने अवधिज्ञान से उसका पूर्वभव बताया, 'हे अंजना! किसी गाँव में एक धनवान श्रेष्ठि की तू मिथ्यात्वी स्त्री थी। तेरी दूसरी एक सपत्नी थी वह परमश्राविका थी। वह प्रतिदिन जिन प्रतिमा की पूजा करने के बाद भोजन करती थी। उस पर द्वेष धारण करती होने से एक दिन तूने उसकी जिन प्रतिमा को कूड़े में छिपा दिया। इस कारण जिनपूजा न हो सकने से उसने मुख में जल भी नहीं डाला और बड़ी आकुलव्याकुल हो गई। वह हर किसीको प्रतिमा के बारे में पूछने लगी, इतने में कूड़े में पडी प्रतिमा कोई बताने लगा, पर तूने न दिखाने के हेतु से उस पर धूल डाली। इस प्रकार बारह मुहूर्त तक जब वह बहुत दुःखी हुई तब दया बताकर तूने उसे प्रतिमा लाकर दी। इस पाप के कारण तेरे पति का तुझसे बारह वर्ष का वियोग हुआ था। अब तेरे कर्मक्षीण हो जाने से तेरा मामा यहाँ आकर तुझे अपने घर ले जायेगा। वहाँ तेरा स्वामी भी तूझे मिलेगा।' इस प्रकार मुनि कह रहे थे कि एक विद्याधर उपर से गुजर रहा था। उसका विमान वहाँ स्खलित हुआ। विद्याधर ने उसका कारण जानने के लिए नीचे देखा तो अपनी भानजी अंजना को पहचान लिया; इसलिये तत्काल नीचे उतरकर दासी एवं पुत्र सहित अंजना को अपने विमान में बिठाकर आकाशमार्ग से चल पड़ा। ___अंजना का बालक बड़ा चपल और उग्र पराक्रमी था। उसने चलते विमान के बूंघरु की आवाज़ सुनी । बालक को बूंघरुं लेने की जिज्ञासा हुई। वह अपना हाथ बढा रहा था कि आकस्मिक रूप से विमान में से नीचे गिर पड़ा। वह देखकर अंजना को बड़ा दुख हुआ और आक्रंद स्वर में रुदन करते हुए कहा : अरे प्रभु! यह क्या गजब! अरे! हृदय क्या वज्र से घड़ा हुआ है कि वह पतिवियोग से टूटा नहीं और अब पुत्रवियोग से भी खण्डित नहीं होता है? इतनी ऊंचाई से गिरा पुत्र क्या बचनेवाला है? यह सुनकर उसका मामा पृथ्वी पर उतरा। एक शिला की रेत पर पड़े बालक को ज्यों त्यों उठाकर उसकी माता को दिया। बाद में वह विद्याधर जिन शासन के चमकते हीरे • १८१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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