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________________ - - सती अंजना जंबूद्वीप में प्रहलादन नामक नगरमें प्रहलादन नामक राजा और प्रहलादनवती नामक रानी थी। उनका पवनंजय नामक कुमार था। उस समय वैताढ्य गिरि पर अंजनकेतु राजा और अंजनवती रानी को अंजना नामक पुत्री थी।युवावस्था में आते ही उसका पाणिग्रहण करवाने के लिए अंजनकेतु राजा अनेक कुमारों के चित्र पट पर आलेखित करवाकर उसे बताता था, यद्यपि उसे कोई भी कुमार पर प्रीति नहीं होती थी। एक बार राजा ने भविष्यदत्त और पवनंजय कुमार के रूप चित्रपट पर आलेखित करवार कर मंगवाये और उसे बताये। दोनों कुमार के रूप, कुल, शील, बल वगैरह देखकर दोनों चित्रों को अपने पास रखे। एक बार राजा अंजनकेतु मंत्रियों के साथ उन कुमारों के गुण वगैरह का विचार करने लगे। उन्होंने मुख्यमंत्री को पूछा कि 'इन कुमारों में विशेष रूप से बढ़कर कौन है?' मंत्री ने कहा, 'महाराज! भविष्यदत्त कुमार में कई गुण हैं यद्यपि श्री भगवंत ने कहा है कि, भविष्यदत्त अठारह वर्ष की आयु में मोक्ष पायेगा, इसलिए वह हमारी कन्या के अनुरूप वर नहीं है; सर्व रूप से यह पवनंजय कुमार ही योग्य है। इस प्रकार मंत्री के कहने से राजा ने अंजना का विवाह तय किया। यह समाचार पवनंजय कुमार को मिलते ही वह ऋषभदत्त नामक अपने मित्र को साथ लेकर अंजना का लावण्य तथा उसका प्रेम देखने वहाँ आया।दोनों नीले वस्त्र धारण करके रात्रि को गुप्तरूप से श्वसुरगृह के अंत:पुर में दाखिल हुए। वहाँ मधुर आलाप होता सुनाई दिया। कोई सखी अंजना को कहने लगी, 'स्वामिनी! आपने अंतिम जो दो कुमारों के चित्र देखे थे, उनमें जो भविष्यदत्त है वह गुणों से अधिक और धर्मज्ञ है परंतु वह अल्प आयुष्यवाला है - ऐसा जानकर उसे छोड़ दिया है और दूसरा पवनंजय दीर्घायु होने से उसके साथ आपका सम्बन्ध किया है।' यह सुनकर अंजना बोली, 'सखी! अमृत के छींटे थोडे पर मीठे और दुर्लभ होते हैं, और विष बहुत अधिक हो तो भी वह किसी काम का नहीं होता।' यह सुनकर पवनंजय कुमार क्रोधायमान होकर खड़ग खींचकर उसे मारने के लिये तैयार हुआ। उसके मित्र ने उसे रोका और कहा, "मित्र! इस समय रात्रि है। हम पराये घर आये हैं। और यह कुंवारी कन्या है। जब तक उससे आपका ब्याह नहीं हुआ तब तक वर परकीया जिन शासन के चमकते हीरे . १७९
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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