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________________ आपमें न हो तो आपके लिए हमें भी कुछ सोचना पड़ेगा।' मानतुंगाचार्य ने कहा, 'अहो ! इसमें क्या? ऐसे चमत्कार तो मैं भी कई जानता हूँ।' राजा ने कहा, 'तो इसी समय बताओ।' श्री मानतुंगाचार्य ने हाँ कह दी और कहा, 'मुझे एक कमरे में बंद कर दो और मेरे शरीर को चारों ओर लोहे की जंजीर बांधो। हाथ-पैर बेड़ियों से बांधो। दरवाजा बंद करके उसे चौवालीस ताले लगाओ। मैं स्तोत्र रचता जाऊँगा और जंजीर और ताले टूटते जायेंगे और मैं कमरे से बाहर आ जाऊंगा।' राजा ने तत्काल इस प्रकार प्रबंध कराकर श्री मानुतुंगाचार्य को एक कमरे में बिठाकर जंजीरे वगैरह बांधकर दरवाजा बंद कर दिया और चौवालीस ताले लगा दिये । श्री मानतुंगाचार्य ने प्रभु आदेश्वर को प्रार्थना की, हृदय में श्री आदेश्वर तीर्थंकर की स्थापना की और एक के बाद एक भक्तामर स्तोत्र की गाथा अपनी अनोखी कवित्व शक्ति से बनाते गये और सबको सुनाते गये । ज्यों ज्यों गाथा बोलते गये त्यों त्यों जंजीर बेडियाँ और ताले टूटते गये, अंतिम गाथा बोलकर महाराज श्री बंधनमुक्त होकर कमरे से बाहर आ गये । राजा और राज्यसभा के कई लोगों ने यह चमत्कार देखा । ऐसा चमत्कार देखकर जैन शासन की बड़ी उन्नति हुई, सिर्फ इतना ही नहीं, राजा और उसकी सभा का बड़ा भाग जो जैनों का द्वेषी था वह भद्रिक बना और अंत में जैन धर्म का बोध पाया। जो चौवालीस गाथाओं की उन्होंने रचना की वह आज 'भक्तामर स्तोत्र' नाम से सुप्रसिद्ध है। दिगम्बर उनमें चार गाथाये छोड़कर अडतालीस गाथाओं का पाठ भी करते हैं। नोंध : जैनो में भी कुछ गोल ताला चौवालीस के बदले उडतालीस था ऐसा मानते है । जिन शासन के चमकते हीरे • १७६
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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