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________________ तुम मुझे जो मार्ग बताओगे उस मार्ग पर मैं जाऊँगा। इस प्रकार के विरुद्ध वचन सुनकर भील उसे पालग व आधा बहरा मानकर निराश होकर वापिस चला गया। वहाँ से राजा आगे चला। उतने में एक साधूउसके देखने में आया, उसे नमस्कार करके वह आगे बढ़ा। वहाँ हाथ में शस्त्र धारण किये हुए दो भील राजा को सामने मिले । उन्होंने राजा को पूछा : अरे पार्थ ! हमारे स्वामी चोरी करने जा रहे थे, वहाँ बीच में एक साधू सामने से आता हुआ मिला। अपशकुन हुए जानकर हमारे स्वामी वापिस लौटे और साधू को मारने के लिए हमें भेजा है तो वह साधू तेरे देखने में आया हो तो बता।' राजा उस समय भी असत्य भी सत्य जैसा है - ऐसा मानकर बोला, 'वह साधू बाँयी ओर से जा रहा है लेकिन वह आपको मिलेगा नहीं क्योंकि उसकी गति एकदम तेज है।' ऐसा उतर सुनकर वे दोनों वापिस लौट गये। तत्पश्चात् राजा सूखे पत्तों वगैरह का आहार करके रात्रि को सोने की तैयारी कर रहा था। उतने में उसने कुछ कोलाहल सूना । उसने ऐसे शब्द सुने कि हम तीसरे दिन संघ को लूटेंगे।' वह सुनकर राजा चिंतातुर बना। क्षण भर की देरी के बाद कई सुभटों ने आकर पूछा, 'अरे ! तूने कहीं चोर को देखा ? हम गोधीपुर के राजा के सेवक हैं, और राजा ने संघ की रक्षा करने के लिए हमें भेजा है।' यह सुनकर राजा ने कहा, 'यदि मैं चोरों को बताऊंगा तो ये राजसेवक अवश्य उन्हें मार डालेंगे और नहीं बताऊंगा तो चोर लोग संघ को लूट लेंगे। अब मुझे यहाँ क्या बोलना उचित है ?' राजा कुछ सोचकर बोला, 'मैंने चोरों को देखा नहीं हैं परंतु कोई ठिकाने पर उन्हें ढूंढ निकालना अथवा ढूंढने की क्या जरूरत है ? तुम सब संघ के साथ रहकर उसकी रक्षा करो।' उतर सुनकर वे चले गये। उनके जाने के बाद सुभटों के साथ हुई बातों को सुनने वाले चोर राजा के पास आये कहने लगे, 'अरे भद्र ! तूने हमारे प्राण बचाये। इसलिए अब हम चोरी या हिंसा नहीं करेंगे। इसका लाभ आपको प्राप्त होवे।' इस प्रकार कहकर चोर अपने स्थान पर चले गये। ____ वहाँ से राजा आगे चले। उतने में कई घुड़सवारों ने आकर पूछा, 'अरे पार्थ ! हमारे शत्र हंसराज को तूने कहीं देखा है ? वह हमारा कट्टर शत्रु है सो उसका हमें विनाश करना है।' असत्य नहीं बोलना है - ऐसे निश्चय से राजा बोला, 'मैं स्वयं हंस हूँ।' ऐसा सुनकर उन्होंने क्रोध से राजा के मस्तिष्क पर खड्ग से प्रहार किया, परंतु उसी समय खड्ग के सैंकडों टुकड़े हो गये और राजा पर पुष्पवृष्टि हुई । तत्काल एक यक्ष प्रकट होकर बोला, 'हे सत्यवादी राजा ! आपकी चिरकाल जय हो। हे नृप! आपको आज ही जिनयात्रा करा सकूँ इसलिए आप इस विमान को अलंकृत करें।' यक्ष के ऐसे वचन सुनकर यात्रा पूर्ण की। यक्ष के सांनिध्य शत्रु को जीत कर, राज्य भोगकर कालानुसार राजा दीक्षा लेकर स्वर्ग में गये। - जिन शासन के चमकते हीरे • १६९
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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