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________________ ओर तत्पश्चात् हाथ जोडकर प्रभु को पूछा : 'हे प्रभु ! आपके कहे अनुसार मेरी माता से आहार क्यों न मिला?' सर्वज्ञ प्रभु बोले, 'हे शालिभद्र ! दहीं की भिक्षा देनेवाली तुम्हारी पूर्वजन्म की माता धन्या थी।' दहीं से पारणे करने के बाद, प्रभु से आज्ञा लेकर शालिभद्र मुनि धन्य के साथ अनशन करने के लिए वैभारगिरि पर गये। वहाँ धन्य और शालिभद्र ने शिलातल पर प्रतिलेहणा करके पादपोपगम नामक आजीवन अनशन स्वीकार किया। ___ वहाँ शालिभद्र की माता भद्रा व श्रेणिक राजा उसी समय भक्तियुक्त चित्त से श्री वीरप्रभु के पास आये। प्रभु को नमस्कार करके भद्रा ने पूछा, 'हे जगत्पति ! धन्य और शालिभद्र मुनि कहाँ हैं ? वे हमारे घर भिक्षा के लिए क्यों नहीं पधारे?' सर्वज्ञ ने कहा : 'वे मुनि आपके घर गोचरी के लिये आये थे लेकिन आप यहाँ आने की व्यग्रता में थी। वे आपके देखने में न आये। तत्पश्चात आपके पुत्र की पूर्वजन्म की माता धन्या नगर तरफ आ रही थी उसने दहीं की भिक्षा अर्पण की, उससे पारणा करके दोनों मुनियों ने संसार से छूटने के लिए हाल ही में वैभारगिरि पर जाकर अनशन ग्रहण किया है।' यह सुनकर भद्रा श्रेणिक राजा के साथ तत्काल वैभारगिरि पर पहुँची। वहाँ वे दोनों मुनि मानो कि पाषाण से घडे गये हो ऐसे स्थिर देखे गये। उनके कष्ट देखकर पूर्व के सुखों को याद करती हुई भद्रा बेहद रोने लगी और बोली : हे वत्स ! तुम घर आये लेकिन मैं अभागन प्रमाद के कारण तुम्हें देख न पायी, इसलिए मुझ पर अप्रसन्न मत हो। घर त्यागकर व्रत लिया तो मेरा मनोरथ था कि कोई समय पर मेरी दृष्टि को आनंद दोगे लेकिन हे पुत्र ! इस शरीर त्याग हेतुरूपी आरंभ से तुमने मेरा वह मनोरथ भी तोड़ डाला है।हे मुनियों ! आपने जो उग्रतप का प्रारंभ किया है उसमें मैं विघ्नकारी नहीं बनूंगी; परंतु मेरा मन इस शिलातल की भाँति अतिशय कठोर हो गया है, क्योंकि ऐसे भयंकर कष्ट में भी वह फूट नहीं जाता।' श्रेणिक राजा ने कहा : हे भद्रे ! हर्ष के स्थान पर आप रुदन क्यों करती हो? अपना पुत्र ऐसा महासत्त्ववान होने से आप एकही सर्व स्त्रियों में सच्ची पुत्रवती हो। हे मुग्धे ! ये महाशय जगत स्वामी के शिष्य को शोभा देवे ऐसा तप कर रहे हैं। इसमें आप स्त्री स्वभाव से वृथा परिताप क्यों कर रही हो?' इस प्रकार राजा के प्रतिबोध करने पर भद्रा उन मुनियों की वंदना करके खेदयुक्त चित्त से अपने घर गई। श्रेणिक राजा भी अपने स्थान पर गये। वे दोनों मुनि धन्य और शालिभद्र कालानुसार सर्वार्थसिद्ध नामक विमान में हर्षरूप सागर में मग्न हुए फिर भी तैंतीस सागरोपम के आयुष्य के देव रूप में उत्पन्न हुए। वहाँ महाविदेह में जन्म पाकर सिद्ध पद पायेंगे। जिन शासन के चमकते हीरे . १६४
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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