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________________ है। संघ देख रहा है, माता मानती है कि अभी बालक मेरे पास आयेगा और | मुझे मिल जायेगा। बालक तो था। वैरागी था इसलिए खिलौने या मिठाइयों से बहकनेवाला न था। वह तो शीघ्र ही ओघा और मुहपत्ति लेकर नाचने लगा और जैनशासन की जयजयकार हुई। यह वज्रस्वामी नामक बालक... 8 वर्ष की उम्र में दीक्षा ली। देवों द्वारा ली गई परीक्षा में दो बार उतीर्ण हुए। देवी ने प्रसन्न होकर वैक्रिय लब्धि और आकाश में उडने की विद्या दी। उन्होंने बोद्ध राजा को उपदेश देकर जैनधर्मी बनाया। एक बार सुवर्णमुद्राएँ लेकर कोई स्त्री वज्रस्वामी के साथ ब्याह करने की मनोकामना से आई। उसे बोध देकर बिदा दी। अकाल के समय उन्होंने अपने संघ का रक्षण किया। स्वयं भद्रगुप्त आचार्य से दशपूर्व का अभ्यास किया था। उन्होंने आर्यरक्षित सूरि महाराज को साढ़े नौ पूर्व का अभ्यास कराया। अंत में वज्रसेन नामक बड़े शिष्य पाट पर स्थापित करके अनेक साधुओं के साथ स्थावर्तगिरि पर जाकर तप प्रारंभ किया। तप के प्रभाव से इन्द्र महाराजा वंदनार्थ पधारें। उन्होंने जैन शासन की विजय पताकाएँ फहरायी और शासन की उन्नति के अनेक कार्य कर स्वर्ग पधारें। * दया के समान कोई धर्म नहीं। * हर कली में फूल का अरमान छिपा बेठा है हर मानव में भगवान छिपा बैठा है * पांच पापों से सजाया है जिसने जीवन, वह मानव से शैतान बन बैठा है। जो भूल न करे वह भगवान। जो भूल करके माफी मांगे वह इंसान। जो भूल को भूल न माने वह बेईमान । भूल करके ऊपर से अहंकार करे वह शैतान।। जिन शासन के चमकते हीरे . १३९
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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