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-चंदनबाला
चंपापुरी का राजा दधिवाहन चेटक राजा की पुत्री - पद्मावती जिसका दूसरा नाम धारिणी - से ब्याहा था। उन्हें वसुमती नामक पुत्री थी। इस दधिवहन राजा को शतानिक राजा के साथ दुश्मनी थी। इस कारण शतानिक राजा ने अपने सैन्य के साथ चंपापुरी पर घेरा डाला। घोर युद्ध हुआ। हजारों मनुष्य उसमें मारे गये। दधिवाहन राजा राज्य छोड़कर भाग गया। शतानिक राजा ने चंपापुरी को लूटा। एक सैनिक ने दधिवाहन राजा की रानी धारिणी और पुत्री वसुमती को पकड़ा।
- सैनिक ने धारिणी को अपनी स्त्री बनने को कहा लेकिन धारिणी ने सैनिक को धूत्कार कर कहा : 'अरे! अधम और पापीष्ट ! तू यह क्या बोल रहा है? मैं परस्त्री हूँ, और परस्त्री लंमट तो मरकर नरक को जाता है।' सैनिक ने धर्मवचनों को अनसूने कर धारिणी का शील खण्डन करने के लिए उस पर बलात्कार करने लगा तो धारिणी ने प्राणत्याग कर दिया। माता के वियोग से वसुमती विलाप करने लगी।करुण आनंद करती हुई कहने लगी, हे माता! तू मेरे उपर का स्नेह छोड़कर चल दी! मुझे अब पराये हस्तों में जाना पड़ेगा, उससे तो अच्छा हो गया होता कि मेरी मृत्यु हो जाये।' इस प्रकार रोते-मचलते हुए मृत माता के चरण पकड़ लिये
और 'तूझे मैं अब नहीं जाने दूंगी, मुझे छोड़कर नहीं जाने दूंगी' - ऐसा करुण विलाप करने लगी।
वसुमती के ऐसे रुदन-वचन सुनकर सैनिक ने कहा : 'हे मृगाक्षी ! मैंने तूझे कोई भी कुवचन नहीं कहे हैं । तू ऐसा सोचना भी मत कि मैं तुझसे शादी करूंगा।' इस वसुमति को समझाकर धारिणी के शरीर पर से हार वगैरह मुख्य मुख्य अलंकार उतार लिये और वसुमति को अपने घर ले गया। घर पर उसकी स्त्री ने उसे कटु शब्दों में सुना दिया कि इस परस्त्री को आप घर लायें हो लेकिन मैं सहन नहीं करूंगी। इसे घर से बाहर निकाल दो। घर से ऐसे वचन सुनकर वसुमति को लेकर सैनिक बाजार में बेचने चला । बाजार में वसुमति का रूप देखकर कई खरीदनेवाले तैयार हो गये। गाँव की वेश्याएँ उसे खरीदना चाह रही थी। एक वेश्या ने वसुमति का हाथ पकड़ा तो राजकुमारीने उसको पूछा, 'तुम्हारा कुल कौनसा है और तुम करती क्या हो?' वेश्या ने उत्तर दिया, 'तूझे कुल से क्या काम? उत्तम वस्त्र और उत्तम भोजन हमारे यहां तूझे मिल जायेगा।' वसुमति समझ चुकी थी कि ये तो वेश्याएँ हैं। इससे उनके साथ जाने की मनाही कर दी। उसे ले जाने के लिये
जिन शासन के चमकते हीरे • १००