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________________ से गुरु की वंदना करने लगा। एक रात्रि को वंकचूल एक वणिक के घर गया। वहाँ बाप-बेटा हिसाबकिताब की बात कर रहे थे। वहाँ से वह एक वेश्या के वहाँ गया, वेश्या कोढी के साथ भोग भोग रही थी। वहाँ से वह राजा के महल की दीवार फांदकर राजा के अंत:पुर में पहुँच गया। अंधेरे में रानी के शरीर पर उसका हाथ पड़ा। रानी जाग उठी और वंकचूल को देखकर उसके साथ भोग भोगने की इच्छा व्यक्त की। वंकचूल को कहने लगी, 'प्रिय! मेरे साथ भोग भुगत। मैं तुझे ढेर सारे रत्न तथा संपत्ति दूंगी।'वंकचूल ने रानी को कहा, 'आप तो मेरी माता समान हो।' ऐसा सुनते ही विरह की आग में जलती हुई रानी ने झूठा आरोप वंकचूल पर लगाकर चिल्लाने लगी। शोरशराबा सुनकर राजा ने सैनिकों ने आकर वंकचूल को पकड़ लिया और प्रातः राजाजी के समक्ष उपस्थित कर दिया। राजा के पूछने पर वंकचूल ने रात्रि की घटना कह दी। राजाजी ने रात्रि के समय दीवार के पीछे छुपकर रानी और वंकचूल के बीच का वार्तालाप सुना था। इस कारण से वंकचूल को छोड़ने के लिये हुक्म दिया और वंकचूल के सद्गुण से प्रसन्न होकर अपना सामंत बनाया। राजा अपनी स्त्री के करतूत जानता था सो जाहिर न किया क्योंकि उसकी अपनी ही इज्जत जाने का सवाल था।सुज्ञ मनुष्य अपने घर का स्वरूप किसीको कहता नहीं है। राजा के उपदेश से, राजा का सामंत बनने के बाद वंकचूल अपना चोरी का धंधा छोड़कर सन्मार्ग पर चलने लगा। एक बार राजा के आदेशानुसार बड़े बलवान् शत्रु के साथ लड़ने गए हुए वंकचूल गहरे वारों से जखमी शरीर के साथ महल में आया। वैद्य औषध वगैरह देकर उसकी सुश्रुषा करते थे। लेकिन घावों की पीड़ा असह्य हो गई थी। राजा को इस वंकचूल की खूब गरज थी। उन्होंने गाँव में दाँडी पीटवाई कि जो इस वंकचूल को जीवित रखेगा उसे यथेच्छ दान देगा।' यह सुनकर एक वैद्य ने आकर कौए का माँस औषध के रूप में देने को कहा। वंकचूल ने कौए का माँस न खाने क अभिग्रह लिया हुआ था। सो वह किसी भी प्रकार से माँस खाने के लिए संमत न हुआ। राजा ने धर्मी जीव जिनदास नामक श्रावक को बुलाकर वंकचूल को समझाने का प्रयत्न किया। जिनदास आया, वंकचूल की इच्छा जानी। किसी भी प्रकार से वह अपना अभिग्रह छोड़े ऐसा नहीं है यह जानकर जिनदास ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, 'हे मित्र! तुं अकेला ही है, सर्व पदार्थ अनित्य है। देह, कुटुम्ब, यौवन, संसार सब असार है - वगैरह धार्मिक वचन सुनाए।' अपनी मृत्यु नजदीक में जानकर वंकचूल ने चार शरण ग्रहण करके नवकार मंत्र का ध्यान धरते हुए मृत्यु पाई और बारहवें देवलोक में गया। कालानुसार वह मोक्ष पायेगा। जिन शासन के चमकते हीरे • ९२
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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