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________________ (व्रत vow) दो।' इसलिए गुरु ने उसे चार नियम दिये। १. अनजान फल खाना नहीं। २. कौए का मांस भक्षण करना नहीं। ३. राजा की रानी तुझ पर प्रीतिवाली हो तो उसका संग करना नहीं और ४. किसी पर प्रहार करना हो तो सात कदम पीछे हटने के बाद प्रहार करना। ये चार नियम ग्रहण करके, गुरु को प्रणाम करके वंकचूल वापस अपने समाज मे लौटा। ___ एक बार एक दूर के गाँव पर डकैती डालकर लौटते वक्त मार्ग भटक गये। तीन दिन तक जंगल में भटकते रहे । भूख प्यास से सब पीड़ित थे, वहाँ एक पेड़ पर सुंदर फल देखे । भूख लगी होने के कारण सबने फल खाये पर वंकचूल ने फल का नाम जानने का आग्रह रखा । फल का नाम कोई न कह सका। अनजान फल न खाने का उसने नियम लिया था। खानेवाले हरेक की मृत्यु हुई। वंकचूल फल न खाने से बच गया और रात को पल्ली में आकर सोचने लगा कि नियम पालन ने मुझे बच लिया। . एक दिन वंकचूल कोई कार्यवश दूसरे गाँव गया था। उस समय उसके दुश्मन नाटकवाले महल के पास आकर नाटक करने लगे और ललकार कर वंकचूल को बाहर आने के लिए कहने लगे। वंकचूल की बहिन पुष्पचूला महल में थी। उसने सोचा कि यहाँ वंकचूल नहीं है ऐसा जानकर दुश्मन समाज के कई लोगों को मार डालेंगे। इस कारण से वंकचूल का भेष पहिनकर असली वंकचूल जैसा अभिनय करते हुए वंकचूल की पत्नी सहित बाहर आकर नाटक देखा और नाटक पूर्ण होने पर नोटंकियों को दान भी दिया। नाटकवाले बिदा हुए। लम्बी रात्रि गुजर गई होने से निद्रा के कैफ के कारण वंकचूल के पुरुष भेष में ही पुष्पचूला और वंकचूल की पत्नी साथ सो गये। प्रभात की बेला में वंकचूल अपने महल में आया और अपनी स्त्री को परपुरुष के साथ सोती हुई देखकर क्रोधित हुआ। मारने के लिये खड्ग उठाया लेकिन शीघ्र ही उसे नियम याद आया, वह सात कदम पीछे हटा। पीछे हटते ही उठाया हुआ खड्ग दीवार से टकराया। आवाज़ से बहिन पुष्पचूला जाग उठी। 'भाई वंकचूल चिरकाल तक आयुष्यमान हो' कहती हुई पलंग से उठ खड़ी हुई।वंकचूल आश्चर्यचकित हुआ और पुरुषभेष धरने का कारण पूछा । बहिन ने नाटक की हकीकत कह सुनाई। वंकचूल परिस्थिति समझकर सोचने लगा... 'अरे पल भर में ही स्त्री और सगी बहिन की अपने हाथ से हत्या हो जाती लेकिन नियम के कारण असाधारण रूप से दोनों बच गये। स्वयं दो स्त्री हत्या के गुनाह से बच गया। वाह! मुनिराज वाह! वह गुरु के दिये हुए नियम की प्रशंसा करने लगा और मुनि निःसंशय महाज्ञानी थे - ऐसे विचार से मन ही मन जिन शासन के चमकते हीरे • ९१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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