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________________ श्री उपदेश माला गाथा ३१ ब्रह्मदत्तची की कथा न किया, जैसी स्थिति में थीं वैसी स्थिति में भाग आती थी। कई ललनाओं ने एक पैर में ही महेंदी लगायी तो, किसी ने एक आँख में अंजन डाला था, किसी के सिर पर से कपड़ा हवा से खिसक गया था, किसी स्त्री ने एक स्तन पर ही कांचली पहनी हुई थी, कोई अपना बच्चा छोड़कर जल्दी में दूसरे के बच्चे को अपना समझकर गोद में उठाकर चल पड़ी। कई तो अपने पति के सामने कोई न कोई बहाना बनाकर वहाँ चली आतीं। कई महिलाएँ भोजन की थाली छोड़कर अधभूखी ही उठकर गायन का आनंद लूँटने चल पड़तीं। कई कामिनियाँ झटपट गाय दुहने का काम निपटाने के लिए उतावली में गाय के अंचल के पास बछड़े को लाकर लगा देतीं। कई स्त्रियाँ अपने पति की अनुमति की प्रतिक्षा में उसके सामने ऊँचा मुंह किये खड़ी हो जातीं। मतलब यह है कि संगीत से मोहित होकर कामिनियाँ घर के सभी कार्य छोड़कर वहाँ पहुँच जातीं। सचमुच संगीत के शब्दों की परवशता ऐसी ही होती है। कहा हैसुखिनि सुखनिदानं, दुःखितानां विनोदः, श्रवणहृदयहारी, मन्मथस्याग्रदूतः । रणरणकविधाता, वल्लभः कामिनीनां, जयति जगति नादः, पञ्चमश्चोपवेदः ॥३५॥ . अर्थात् - नाद (संगीत) सुखी मनुष्य के सुख का कारण है; दुःखी मनुष्यों का विनोद (मनोरंजन) करके उनके दुःख को हलका करने वाला है; सुनने वालों के हृदय को हरण करने वाला; कामदेव का अग्रदूत है, रणभूमि में योद्धाओं को प्रोत्साहित कर्ता और कामिनियों को प्यारा है। इस प्रकार संगीत का नाद पांचवाँ उपवेद है; जगत् में नाद विजयी बनता है ॥३५॥ . कुछ ही दिनों में नगर की सभी युवतियाँ संगीत-राग में पागल होकर उसके पीछे-पीछे घूमने लगीं। यह देखकर नगरवासी कुड़कर विचारने लगे'चाण्डाल कुल में उत्पन्न इन दोनों लड़कों ने सारे नगर को भ्रष्ट कर दिया है।' उन्होंने राजा के पास जाकर शिकायत की-"महाराज! इन दो चाण्डालपुत्र चित्र और सम्भूति ने हमारे सारे नगर को दूषित कर दिया। हमारी गृहणियों को इन्होंने अपने संगीत की रागरागिनियों से आकृष्ट कर कर्तव्यविहीन, आचरणहीन और धर्म-भ्रष्ट कर दिया है। अतः इन्हें शीघ्र ही नगर से निकाल दिया जाना चाहिए; अन्यथा ये अगर अधिक समय तक रहे तो आचारशुद्धि नहीं रहेगी।" राजा ने उनकी शिकायत सुनकर उन्हें नगर से निकाल दिया। 1. दूसरे स्थान पर कथा में इसके बाद कौमुदी महोत्सव में बुरखा ओढ़कर दोनों भाई जाते हैं। गायन गाते हैं। लोक आकर्षित होते हैं। कोई बुरखा खींचकर देखते हैं। ये कौन हैं। उनको पहचान ने पर धक्का मुक्की से मारकर निकालते हैं तब निम्न विचार करते है। (इतना वर्णन अधिक है) ___67
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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