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________________ ब्रह्मदत्त चक्र की कथा श्री उपदेश माला गाथा ३१ कंठ सूख रहा था। अतः मुनि एक पेड़ की छाया में आकर बैठा। चारों ने मुनि को देखा तो सोचा- 'ये कोई महात्मा हैं। प्यास के मारे इनका गला सूख रहा है। भयंकर वेदना हो रही है। अतः इनके पास चले और इनकी कुछ सेवा करें। ' यों सोचकर वे मुनि के पास आये। मुनि को अत्यन्त घबराते हुए देख वे आपस में सलाह करने लगे - " भाई! ये जंगमतीर्थ रूप मुनि हैं। पानी के बिना तड़पकर अनेक जीवों के उपकारी ये मुनि मर जायेंगे। अतः कहीं से पानी लाकर इनको दें तो इनके प्राण बच जायेंगे और हमें भी महान् पुण्य होगा।" वे चारों पानी के लिए इधर-उधर जंगल में भागT-दौड़ करने लगे; मगर आस-पास कहीं पानी न मिला। तब सभी को सूझा कि गाय तो है। इसे दूहकर मुनि के मुंह में दूध डाल दें तो इनके प्राण बच जायेंगे।' अतः उन्होंने एक गाय को दूहा और दूध लेकर मुनि के पास आये और दूध के बिन्दु उनके मुंह में डालकर उन्हें होश में लाये । मुनि ने होश में आते ही आँखें खोली । मन ही मन सोचने लगे–“अहो! इन्होंने मुझ पर महान् उपकार किया है। मुझे आज दूध पिलाकर जीवनदान दिया है मैं भी इन्हें कुछ दूं।" साधु ने उन्हें सरल स्वभावी जानकर उपदेश दिया । उपदेश सुनकर सभी को वैराग्य हो गया। उन चारों ने सम्यक्त्व प्राप्त करके दीक्षा ग्रहण की। मुनि ने उन चारों नवदीक्षित साधुओं को साथ लेकर अन्यत्र विहार किया। वे चारों चारित्र का पालन करने लगे। परंतु कुछ काल व्यतीत होने पर उनमें से दो मुनि चारित्र की अवज्ञा करने लगे। वे कहने लगे – “भाई ! साधुजीवन है तो अच्छा, मगर इसमें स्नान आदि का विधान न होने से शरीरशुद्धि नहीं होती तथा मलिन वस्त्र धारण करना, दांत साफ नहीं करना इत्यादि महाकष्ट है।" इस तरह के विचारों से उन्होंने चारित्र की विराधना की, और दूसरे दोनों मुनि निरतिचार चारित्र की आराधनाकर उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया। जिन्होंने चारित्र की विराधना की थी, अंतिम समय में पाप की आलोचना किये बिना ही मरने से उन्हें देवगति प्राप्त हुई । वहाँ चिरकाल तक देवलोक में सुख भोगकर वहाँ से आयुष्य पूर्ण कर दशार्ण देश में किसी ब्राह्मण के यहाँ काम करने वाली एक दासी की कुक्षि में पुत्र रूप में पैदा हुए। यह उनके द्वारा साधुवेष की निन्दा का फल था। क्रमशः वे जवान हुए और अपनी मां की तरह वे भी ब्राह्मण के यहाँ घर का काम करने लगे। एक बार वर्षाकाल में खेत की रखवाली के लिए दोनों भाई गये। वहाँ एक बड़ का छायादार पेड़ था। दोपहर के समय दोनों में से एक दासीपुत्र उसकी शीतल छाया में सोया हुआ था। उस समय बड़ के खोखले में से एक सांप 62
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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