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आयुष्य की अनित्यता, गुरुकर्मा जीव
श्री उपदेश माला गाथा २६ से पीड़ित काया होने पर भी वे मुनि मायारहित होकर भूमंडल पर विचरण करने लगे। उस समय सौधर्म इन्द्र ने अपनी सभा में फिर उस मुनि की प्रशंसा की"धन्य है सनत्कुमार मुनि को! यद्यपि उनका शरीर महान् रोगों से पीड़ित है, फिर भी औषध आदि की इच्छा नहीं करते।" इन्द्र के वचन सुनकर अश्रद्धावान दो देव फिर ब्राह्मण का रूप धारण करके मर्त्यलोक में आये, और सनत्कुमार मुनि के पास आकर बोले- "मुनिवर! आपका शरीर रोगों से जीर्ण हो गया है और अतीव पीड़ित दीखता है। हम वैद्य हैं, आप यदि आज्ञा दें तो हम आपका इलाज करें।" मुनि बोले- "यह शरीर अनित्य है; इसका उपाय किसलिए किया जाय? तुम्हारे पास रोग दूर करने की शक्ति है तो कर्मरोग को दूर करो। शरीर के रोग दूर करने की शक्ति तो मेरे पास भी है।" इतना कहकर अपनी अंगुली पर उन्होंने थूक लगाकर दिखाया, जिससे उनकी अंगुली सोने सी हो गयी। फिर उन्होंने कहा"ऐसी शक्ति तो मेरे पास भी है; परंतु इससे कौन-सा मतलब सिद्ध हो सकता है? जब तक कर्म रोगों का क्षय नहीं हो, तब तक शरीर का रोग मिट जाने से क्या लाभ? इसीलिए मुझे रोग का इलाज कराने से क्या लाभ?" दोनों देव सुनकर आश्चर्य चकित हो गये, और मुनि को वंदन करके अपना स्वरूप बतलाकर देवलोक वापस लौट गये।
___ मुनि सनत्कुमार भी सात सौ वर्ष तक रोग की पीड़ा का अनुभव कर एक लाख वर्ष तक निर्दोष चारित्र का पालनकर तीसरे देवलोक में उत्पन्न हुए। उसके बाद महाविदेह में मनुष्यजन्म प्राप्त कर मोक्षगति प्राप्त करेंगे ॥२८॥
अब आयुष्य की अनित्यता बतातें हैंजड़ ताव लवसत्तमसुरविमाणवासी, वि परिवडंति सुरा ।
चिंतिज्जतं सेसं, संसारे सासयं कयरं ॥२९॥
शब्दार्थ - यदि अनुत्तरविमानवासी देवताओं का भी आयुष्य पूर्ण हो जाता है तो फिर विचार करें कि शेष संसार में क्या (किसका जीवन) शाश्वत (कायम) है?।।२९।।
- भावार्थ - अनुत्तरविमानवासी देव लवसत्तमा देव कहलाते हैं। संसार के प्राणियों में सबसे ज्यादा आयुष्य नारकीयों का छोड़कर इन देवों का होता है-३३ सागरोपम का। वह आयुष्य भी पूर्ण हो जाता है, तब विचार करना चाहिए कि अनुत्तरदेव विमान की अपेक्षा हीन इस संसार में कौन शाश्वत (स्थिर) है? अर्थात् इस संसार में कोई भी स्थिर नहीं है। एकमात्र धर्म ही नित्य है, शाश्वत है ॥२९।।
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