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________________ सनत्कुमार का दृष्टांत श्री उपदेश माला गाथा २८ सनत्कुमार का दृष्टांत . सनत्कुमार चक्रवर्ती हस्तिनापुर नगर में रहता था। वह अत्यन्त रूपवान था और ६ खण्ड के साम्राज्य का अधिपति था। एक दिन इन्द्र ने अपनी सभा में सनत्कुमार चक्रवर्ती के रूप की प्रशंसा करते हुए कहा-'भूतल में आज सनत्कुमार चक्रवर्ती के समान कोई रूपवान नहीं है।' दो देवों ने इन्द्र की इस बात पर विश्वास नहीं किया और वे कुतूहलवश इसे प्रत्यक्ष देखने के लिए बूढ़े ब्राह्मण का रूप बनाकर हस्तिनापुर आये। स्नान का समय होने से सनत्कुमार उस समय स्नान करने की चौकी पर आभूषण रहित बैठे सुगन्धित तेल मालिश करा रहे थे। उनके अनुपम रूप को देखकर ब्राह्मण वेषधारी देव विस्मित और मुग्ध होकर बार-बार सिर हिलाने लगे। __चक्रवर्ती ने पूछा-"सिर क्यों हिला रहे हो?" उन्होंने कहा-'आपके रूप की तारीफ सुनकर बहुत ही दूर से हम आपके दर्शनों को आये थे। और जैसा हमने सुना था, वैसा ही पाया।' ब्राह्मणों के वचन सुनकर चर्की रूपगर्वित होकर बोला-"अजी! इस समय इस अवस्था में मेरा रूप क्या देख रहे हैं? जब मैं स्नान करके उत्तम वस्त्र पहनकर अलंकार आदि से सज्जित होकर, मस्तक पर छत्र धारण करके सिंहासन पर बैलूंगा और लोग चामर ढोल रहे होंगे और बत्तीस हजार राजा मेरी सेवा करते होंगे; तब देखना मेरा रूप! अभी मेरे रूप का क्या देखना?" चक्री के वचन सुनकर दोनों देवों ने विचार किया-'उत्तम पुरुष को अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना उचित नहीं है।' कहा भी है न सौख्यसौभाग्यकरा नृणां गुणाः, स्वयंगृहीता युवतीकुचा इव । परैर्गृहीता द्वितीयं वितन्वते, न तेन गृह्णन्ति निजं गुणं बुधाः ॥२४॥ अर्थात् - अपने मुंह से बखाने हुए गुण उसी तरह सुख और सौभाग्य देने वाले नहीं होते; जिस तरह युवती द्वारा स्वयं गृहीत स्तन उसे सुख और सौभाग्य नहीं देते। अपितु ये दोनों दूसरे पुरुष द्वारा करने से सौभाग्य और सुख देते हैं। अतः बुद्धिमान पुरुष अपने गुणों की प्रशंसा अपने मुख से नहीं करते।।२४।। सनत्कुमार की बात सुनकर फिर आने का वादा करके वे दोनों ब्राह्मण रूपधारी देव वहाँ से चले गये। जब चक्री स्नान-विलेपनकर वस्त्र-आभूषण धारण कर राजसभा में आकर सिंहासन पर बैठे, तब वे ब्राह्मण वापस आये। उस समय चक्री का रूप देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ। चक्री ने पूछा-"खेद किसलिए कर रहे हो?" उन्होंने कहा-"संसार की विचित्रता देखकर हमें खेद होता है।'' चक्री 58
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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