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________________ श्री उपदेश माला गाथा २५ बाहुबलि का दृष्टांत भूमि तक आती है; स्वजन श्मशान तक आते हैं और शरीर चिता में रहता है; परलोक में गमन करते समय जीव अपने कर्मों को साथ लेकर अकेला जाता है।।१७॥ "अत: इस भौतिक अनित्य राज्य को छोड़ो मैं तुम्हें एक अक्षय राज्य पाने का मार्ग बताता हूँ। उसे ग्रहण कर अक्षय मोक्ष राज्य को प्राप्त करो।" इस प्रकार प्रभु का उपदेश सुनकर सभी ने दीक्षा ग्रहण की और निर्दोष चारित्र पालन करने लगे। दूत ने आकर भरत चक्रवर्ती को ९८ भाईयों का सारा आँखों देखा हाल निवेदन कर दिया। सुनते ही चक्रवर्ती भरत ने साधु बने हुए अपने ९८ भाईयों के पुत्रों को बुलाकर उन्हें अपने-अपने हिस्से का राज्य सौंप दिया। अयोध्या में आ जाने के बाद भी चक्ररत्न ने उनकी आयुधशाला में प्रवेश नहीं किया। सुषेण सेनापति ने चक्री के पास आकर खबर दी-'स्वामिन! चक्ररत्न आयुधशाला में प्रवेश नहीं करता।' भरतचक्री ने पूछा-'इसका क्या कारण है?' सुषेण सेनापति ने कहा- "स्वामिन्! मालूम होता है, कोई शत्रु अभी भी जीतना बाकी रह गया है।" चक्री ने कहा- 'इस ६ खण्ड में तो मेरे पर अब कोई भी दुश्मन नहीं रहा।' सुषेण बोला-"स्वामिन्! आप का छोटा भाई बाहुबलि आपकी आज्ञा नहीं मानता तो उसे भी शत्रु ही समझना चाहिए। अपने घर में भी जिसकी आज्ञा नहीं मानी जाती; वह उस घर का स्वामी कैसे? अतः उसे आपको आज्ञावर्ती करना चाहिए।" भरत ने विचार किया-"मेरे भय से मेरे ९८ भाईयों ने तो मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली है। अब तो एकमात्र बाहुबलि ही बाकी रहा है, वह भी छोटा भाई है। उसको कैसे अपने अधीन करूँ? उस पर बल-प्रयोग कैसे करूँ?" सुषेण ने कहा-"स्वामिन्! इस बात का विचार नहीं करना चाहिए। अगर भाई भी गुणहीन है तो उससे क्या लाभ? सोने की छुरी हृदय में नहीं भौंकी जाती। इसीलिए आप दूत भेजकर उसे यहाँ बुलाइए। परंतु वह बड़ा अभिमानी है, यहाँ कदापि नहीं आयेगा।' सुषेण सेनापति के वचन सुनकर भरतराज उत्तेजित हो उठे। उन्होंने तत्काल सुवेग नाम के दूत को बुलाकर आदेश दिया-"तुम तक्षशिला में मेरे छोटे भाई बाहुबलि के पास जाओ और उसे यहाँ बुला ले आओ।" भरत महाराज की आज्ञा को माला की तरह शिरोधार्य करके सुवेगदूत परिवारसहित रथ में बैठा। रथ वायुवेग से चला। मार्ग में उसे बहुत अपशुकन हुए, मगर उनकी परवाह न करके स्वामी की आज्ञा-पालन में उत्सुक सुवेग दूत कुछ ही दिनों में बहली देश में पहुँच गया। सुवेग को नया और अजनबी व्यक्ति देखकर वहाँ के निवासियों ने पूछा-तुम कौन हो? कहाँ जा रहे हो? यहाँ किस प्रयोजन : 49
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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