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________________ बाहुबलि का दृष्टांत श्री उपदेश माला गाथा २५ से आये हो? दूत ने उत्तर दिया-मैं भरत चक्रवर्ती का सुवेग नाम का दूत हूँ और बाहुबलि को लेने आया हूँ। तब लोगों ने आश्चर्य मुद्रा में पूछा-"यह भरत कौन है?" सुवेग दूत ने कहा-"यह ६ खण्ड का अधिपति जगत् का स्वामी है, बाहुबलि का बड़ा भाई है, और लोगों में विख्यात है।'' तब लोगों ने कहा- "इतने दिन तक तो हमने इसका नाम नहीं सुना। वह रहता कहाँ है? हमारे देश में तो स्त्रियों के स्तन की कांचली आदि के कपड़ों पर भरत (कसीदे) का काम होता है, इस अर्थ में जरूर भरत शब्द का प्रयोग होता है। लेकिन भरत हमारा राजा है, ऐसा तो हमने नहीं सुना। कहाँ हमारा राजा और कहाँ भरत? हमारे स्वामी के भुजदण्ड के प्रहार को सहन करने में इस जगत् में कोई भी समर्थ नहीं है।" लोगों के मुख से बाहुबलि के बल की प्रशंसा सुनकर दूत चकित होता हुआ, तक्षशिला आया और बाहुबलि के सभामंडप के निकट पहुँचा। द्वारपाल को अपना परिचय दिया। द्वारपाल ने राजा से दूत के आगमन का निवेदन किया। राजा ने द्वारपाल को दूत को अंदर बुला लाने की आज्ञा दी। सुवेग दूत रथ से उतरकर बाहुबलि के पास पहुँचा और उनके चरणों में नमस्कार किया। बाहुबलि ने दूत से अपने भाई के सर्व कुशल समाचार पूछे। दूत ने कहा-आपका भाई भरत सब प्रकार से कुशल है। अयोध्या पुरी कुशल-मंगलमय है भरत के सवा करोड़ पुत्र भी कुशल है। उनके घर में चौदह रत्न, ९ निधान आदि महान् ऐश्वर्य सम्पत्ति है। अतः उन्हें अकुशल करने में कौन समर्थ है? यद्यपि उन्हें समस्त ऋद्धि-सम्पत्ति मिली है, फिर भी अपने भाई के दर्शन की उनकी महान् उत्कंठा है। इसी कारण उन्होंने आपको बुला लाने के लिए मुझे आपके पास भेजा है। अतः आप वहाँ पधारें। अपने बड़े भैया को अपने मिलन जनित सुखातिशय से आनंदित करें। यदि आप नहीं पधारेंगे तो भरत महाराज आप पर बहुत नाराज होंगे और शायद आपको अपनी सत्ता के बल पर बहुत हैरान भी करें। उनकी आज्ञा के आधीन बत्तीस हजार राजा हैं। उनके चरणों की सेवा से आपका कुछ भी उपहास नहीं होगा। 'न दुःखं पञ्चभिः सहेति' "पाँच मनुष्यों के साथ सुखों का उपभोग करने में दुःख नहीं होता', ऐसी लोकोक्ति है। अतः आप अभिमान छोड़कर वहाँ पधारें।" दूत के वचन सुनते ही बाहुबलि क्रुद्ध हो गये। उनकी त्यौरियाँ चढ़ गयी, अपनी भुजा फटकारते हुए वे बोले-'अरे दूत! भरत मेरे सामने किस बिसात में हैं? उसके चौदह रत्न मेरी दृष्टि में नाचीज हैं। और नौकर हैं ही कितने? नौकर तो नौकर ही हैं। उसमें अपनी ताकत कितनी है? क्या वह इस बात को भूल गया, जब मैं बचपन में गंगा के किनारे पर उसे गेंद अथवा डंडे की तरह आकाश में उछालता था? बाद में आकाश से गिरते समय 50
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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