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________________ श्री उपदेश माला गाथा २५ बाहुबलि का दृष्टांत शब्दार्थ - यदि धर्म अभिमान से होता तो बाहुबलि को; जो शीत, उष्ण, वायु आदि कठोर परिषह सहते हुए एक वर्ष तक निराहार रहे, वहाँ केवल ज्ञान हो जाता (पर हुआ नहीं) ।।२५।। भावार्थ - धर्म अहंकार से नहीं होता। अगर होता होता तो बाहुबलि को; जो शीत, उष्ण, वायु आदि अनेक परिषहों को भी सहन करते रहे। तब हो जाता मैं अपने लघु भाईयों (जो भगवान् ऋषभदेव के पास उनसे पूर्व दीक्षित थे) को कैसे वंदन करूँ?" इस प्रकार का अभिमान का क्लेश था। इसीलिए उन्हें उस अभिमान के फल स्वरूप धर्म (कर्मक्षय) न होने से केवलज्ञान नहीं हुआ। और जब ब्राह्मी-सुन्दरी साध्वियों की प्रेरणा से अभिमान दूर हुआ और उन्होंने नम्र होकर जब अपने भाइयों (साधुओं) को वन्दना करने के लिए कदम उठाया तभी केवलज्ञान हो गया। अतः अभिमान से धर्म नहीं होता।' इस विषय में बाहुबलि का दृष्टांत देना अप्रासंगिक न होगा ___ बाहबलि का दृष्टांत. । भरत चक्रवर्ती ने ६ खण्डों पर विजय प्राप्त कर लेने के बाद अपने ९८ भाइयों (बाहुबलि को छोड़कर) को बुलाने के लिए दूत भेजा। दूत ने वहाँ जा कर कहा- "आप को भरत महाराजा बुलाते हैं।'' यह सुनकर सभी भाई एकत्रित होकर विचार करने लगे-भाई भरत इस समय लोभ रूपी पिशाच से ग्रस्त होकर सत्ता के मद में मत वाले बने हुए हैं। ६ खंडों का राज्य मिलने पर भी इनकी लोभतृष्णा शांत नहीं हुई। अहो लोभान्धता कैसी होती है! कहा भी है कि लोभमूलानि पापानि, रसमूलानि व्याधयः । .. स्नेहमूलानि दुःखानि, त्रीणि त्यक्त्वा सुखी भव ॥१३॥ अर्थात् - लोभ पाप का मूल है, रस (स्वाद) वृत्ति व्याधि का मूल है, और स्नेह (आसक्ति) दुःख का मूल है। इसीलिए तीनों को छोड़कर सुखी हो जाओ ।।१३।। भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्तास्तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः । कालो न यातो वयमेव यातास्तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा ।।१४।। अर्थात् – भोगों का हमने उपभोग नहीं किया; भोगों ने ही हमारा उपभोग (भक्षण) कर डाला है। हमने तप नहीं किया, तप ने ही हमें तप्त कर दिया; काल (वक्त) नहीं गया (कटा), हम ही चले गये (कट गयें)। यानी हमारी उम्र ही बीत चली। और हमारी तृष्णा जीर्ण (बूढ़ी) नहीं हुई, हम ही जीर्ण (बूढ़े) हो 32 47
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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