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________________ श्री उपदेश माला गाथा १८ संबाधन राजा का दृष्टांत संबाधन राजा का दृष्टान्त वाणारसी नगरी में संबाधन नाम का राजा राज्य करता था। उसके एक हजार कन्याएँ थीं। बहुत उपाय करने पर भी उसके एक भी पुत्र नहीं हुआ। राजा ने सोचा-"पुत्र के बिना यह राज्यलक्ष्मी किस काम की? जिसके घर में पुत्र नहीं, उसका घर भी सूना है।" वेदों में भी कहा है अपुत्रस्य गति स्ति, स्वर्गो नैव च नैव च । तस्मात्पुत्रमुखं दृष्ट्वा, स्वर्गे गच्छन्ति मानवाः ॥११॥ __'पुत्र के बिना मनुष्य की सद्गति नहीं होती। वह स्वर्ग नहीं जा सकता। वह पुत्र का मुख देखकर ही स्वर्ग जा सकता है ॥१॥' लोकोक्ति भी है-चोसठ दीवा जो बले, बारे रवि उगंत । तस घर तोहे अंधारडु, जस घर पुत्र न हुंत।। 'चौसठ दीपक एक साथ जलते हों, एक साथ बारह सूर्य उदित होते हों, लेकिन जिस घर में पुत्र नहीं है, उस घर में अंधेरा ही है।' अतः पुत्र बिना यह राजलक्ष्मी व्यर्थ है। राजा ने पुत्रप्राप्ति के लिए अनेक मांत्रिक, तांत्रिक और यांत्रिक लोगों को बुलाकर पूछा। परंतु किसी भी उपाय से पुत्रप्राप्ति नहीं हुई। कहा भी हैप्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः, सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा । भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने, नाऽभाव्यं भवति, न भाविनोऽस्ति नाशः ॥२॥ ___ 'नियति के बल से शुभ अथवा अशुभ जो पदार्थ प्राप्त होने वाला होता है, वह मनुष्य को अवश्य ही प्राप्त होता है। मनुष्य के अनेक प्रयत्न करने पर भी नहीं होने वाला नहीं होता और जो होने वाला है वह नहीं रुकता ॥२॥' राजा इन्हीं विचारों के भंवरजाल में गोते खाता हुआ बूढ़ा हो गया। संयोगवश उस समय पटरानी के गर्भ में एक जीव पुत्र रूप में आया। राजा पुत्र का मुख देखे बिना ही परलोक सिधार गया। सभी नगरवासी एकत्रित होकर विचार करने लगे कि 'अब क्या होगा? राजा के पीछे किसी पुत्र के बिना राज्य कैसे चलेगा? उनका उत्तराधिकारी कौन बनेगा? और बिना राजा के राजगद्दी खाली रहेगी।' इस तरह सभी नगरवासी लोग शोकाकुल हुए। जब शत्रु-राजाओं ने भी सुना कि संबाधन राजा अपुत्र ही मरा है तो उन सभी ने एकत्रित होकर, परस्पर एकमत होकर विशाल सेना इकट्ठी की; और शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होकर वाणारसी की ओर कूच की। वाणारसी के लोगों ने राज्य पर शत्रु-राजाओं के चढ़ाई करके आने की बात सुनी तो वे बड़े दुःखी हुए और अपने-अपने घर 33
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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