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________________ चन्दनबाला की कथा श्री उपदेश माला गाथा १६-१८ अब साधु की पूजनीयता का कारण बताते हैधम्मो पुरिसप्पभवो, पुरिसवरदेसिओ पुरिसजिट्ठो । लोएवि पहू पुरिसो, किं पुण लोगुत्तमे धम्मे ॥१६॥ शब्दार्थ - धर्म पुरुष के द्वारा उत्पन्न हुआ है यानी प्रचलित किया हुआ है। और श्रेष्ठ पुरुष ने ही धर्म का प्रथम उपदेश दिया है। अतः पुरुष ही ज्येष्ठ (बड़ा) है। लोक व्यवहार में भी पुरुष ही स्वामी माना जाता है, तो लोकोत्तम धर्म में पुरुष की ज्येष्ठता मानी जाय, इसमें कहना ही क्या ? । । १६ । । भावार्थ - जो दुर्गति में पड़ते हुए आत्माओं का रक्षण (धारण) करें, वह धर्म कहलाता है। पुरुष अर्थात् गणधर भगवन्तों से धर्म उत्पन्न (प्रचलित ) हुआ है। पुरुषवर = पुरुषों में श्रेष्ठ, श्री तीर्थंकर परमात्मा ने बतलाया (प्ररूपित ) है। श्रुत चारित्र रूपी धर्म के स्वामी पुरुष होने से पुरुष बड़े हैं। संसार में मालिक पुरुष को ही बनाया जाता है, स्त्री को नहीं। जब लोक (संसार) में पुरुष मुख्य माना जाता है तो लोकोत्तर धर्म में क्यों नहीं? धर्म में तो विशेषता पुरुष की ही रखनी श्रेष्ठ है || १६ || इसके लिए दृष्टान्त देते हैं संवाहणस्स रन्नो, तइया वाणारसीए नयरीए । कणासहस्समहियं, आसी किर रूववंतीणं ॥१७॥ तहवि य सा रायसिरि उल्लट्टंती न ताइया ताहिं । उयरट्ठिएण इक्केण, ताइया अंगवीरेण ॥१८॥ शब्दार्थ - उस समय वाणारसी नगरी में संबाधन नामक राजा के अति रूपवती हजार कन्याएँ थीं। तथापि उसकी राजलक्ष्मी को लूटते समय वे रक्षा नहीं कर सकी। परंतु गर्भ में रहे हुए अंगवीर्य नाम के पुत्र ने उसकी रक्षा की।।१७-१८।। भावार्थ किसी समय वाणारसी नगरी में संबाधन नाम का राजा राज्य करता था। उसके एक हजार अत्यन्त रूपवती पुत्रियाँ थीं। जब राजा मर गया तो उसकी राजलक्ष्मी लूटी जा रही थी। मगर कोई कन्या उसकी रक्षा नहीं कर सकी। अंत में राजा की रानी के गर्भ में रहे हुए अंगवीर्य नाम के पुत्र से राज्यलक्ष्मी की रक्षा हुई। अतः संसार में पुरुष ही प्रधान है। इसकी स्पष्टता के लिए उसकी कथा कहते हैं 32
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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