________________
श्री उपदेश माला गाथा १४
चन्दनबाला की कथा चौथे दिन किसी पड़ौसी ने सेठ से पूछा - 'वसुमति कहाँ है?' उसके दुःख से दुःखित हुए सेठ ने कहा- मैं नहीं जानता कि वह कहाँ गयी है।" पडौसी ने कहा - " आप की पत्नी द्वारा मारने से आक्रंद करते और तलघर में बन्द करते हुए आज से चार दिन पहले हमने देखा था । अतः अपने घर में तलाश करो। सेठ ने अपने घर में वसुमति की तलाश की तो तलघर में पड़ी हुई मस्तक से मुंडित, हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ी से जकड़ी हुई, भूख से अत्यंत पीड़ित वसुमति को देखी। यह देख कर सेठ बड़े ही दुःखित हुए। और विचार करने लगे कि "अहो ! स्त्री के दुश्चरित्र को कोई नहीं जान सकता। धिक्कार है मेरी स्त्री को।" सेठ ने वसुमति से पूछा कि "पुत्री ! तेरी ऐसी दशा क्यों हुई ? किसने की?" वसुमति ने कहा - 'पिताजी! यह सब मेरे कर्मों का दोष है। " सेठ ने उसे घर की देहली के पास बिठाकर कहा–‘" तूं यहीं बैठ। मैं बेड़ी कटवाने के लिए लुहार को बुलाकर `लाता हूँ।” वसुमति ने कहा - "मुझे बहुत भूख लगी है। जो भी कुछ मिल जाय, खाने को दो ।" उस समय घोड़े के लिए उड़द के बाकले बनाये हुए थे। सेठ ने सूप के एक कोने में उन्हें डालकर वसुमति को खाने के लिए दिये । वह भी एक पैर देहली के अन्दर और एक पैर देहली के बाहर रखकर बैठी हुई उस सूप के कोने में पड़े हुए उड़द के बाकुले खाने के लिए तैयारी करती थी। उस समय श्री श्रमण भगवान महावीर ने छमस्थ अवस्था में विचरते हुए अपने कर्मक्षय करने के लिए इस प्रकार का अभिग्रह (संकल्प) तप किया हुआ था। कोई राजकन्या हो, जिसका मस्तक मुंडित हो; दोनों पैरों में बेड़ी पड़ी हो, आँखों में आँसू हो; अधोभाग पर कच्छा बांधे हो, हाथ भी बेड़ियों से जकड़े हों, कैदी रूप में पकड़ी हुई हो, मूल्य से खरीदी हुई हो, एक पैर देहली के बाहर और एक पैर देहली के अंदर रखकर बैठी हो; दो पहर बीत गये हों, ऐसी कोई स्त्री सूप के कोने में रखे हुए उड़द के बाकुले देगी तो ग्रहण करूँगा।" ऐसा घोर अभिग्रह लिये हुए प्रभु महावीर को पाँच महीने और पच्चीस दिन व्यतीत हो
गये थें। लेकिन अभी तक वह पूर्ण नहीं हो रहा था ।
*
उसी अभिग्रह के सिलसिले में ग्रामानुग्राम विचरते हुए महावीर स्वामी कौशाम्बी में पधारें। वे एक घर से दूसरे और दूसरे से तीसरे घर में जाते, परंतु अभिग्रह के अनुरूप भिक्षा नहीं मिलती थी। घूमते-घूमते भगवान् धनावह सेठ के घर के पास पहुँचे। उन्हें देखकर वसुमति विचार करती है कि "मैं धन्य हूँ! ऐसी दशा में भी भगवान के दर्शन हुए। उसने प्रभु से कहा - "हे त्रिलोक के स्वामी! मेरे हाथ से उड़द के बाकले भिक्षा के रूप में लेकर मेरा उद्धार करो, मुझे
29