SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्दनबाला की कथा श्री उपदेश माला गाथा १४ भव दुःख से तारो।" ऐसे वचन सुनकर भगवान ने अभिग्रहपूर्ति के सारे चिह्न देख विचार किया- "संभव है, मेरा अभिग्रह संपूर्ण होने आया हो, परंतु एक कमी होने से ही भगवान् वापिस लौटने लगे। तब वसुमति की आँखों में आँसू उमड़ पड़े।" वह सोचने लगी-"धिक्कार है मुझ मन्दभागिनी को! मेरे घर तक भगवान् आये भी लेकिन मेरा उद्धार किये बिना ही वापिस चले गये।" तब भगवान ने उसकी आँखों में आँसू देख अपना अभिग्रह पूर्ण हुआ जान वापिस आकर वसुमति के हाथ से उड़द बाकुले भिक्षा के रूप में ग्रहण किये। इससे वसुमती के हर्ष की सीमा न रही। उसके नेत्र प्रफुल्लित हो गये; रोम-रोम विकसित हो गये; मानो भवसागर से पार उतर गयी हो। दान के प्रभाव से पैरों की बेड़ियाँ और हाथों की हथकड़ियाँ अपने आप टूट गयी, मस्तक पर विस्तृत सुन्दर श्याम केश हो गये, और पाँच दिव्य प्रकट हुए१. साड़े बारह करोड़ सौनयों की वर्षा हुई, २. सुगंधित पंचरंगी पुष्प की वृष्टि हुई, ३. वस्त्रों की वर्षा हुई, ४. सुगंधित जल की वर्षा हुई और ५. अहो दानम्-अहो दानम् की घोषणा की। देवताओं ने जयजयकार किया। चन्दन जैसा शीतल स्वभाव होने के कारण वसुमति का नाम देवों ने 'चन्दनबाला' रखा। प्रभु ने छह महीने की तपस्या का पारणा कर अन्यत्र विहार किया। लोगों ने चन्दनबाला की बहुत प्रशंसा की। उस समय इन्द्र ने आकर शतानीक राजा को कहा-'यह राजा दधिवाहन की पुत्री वसुमति है। अपने गुणों के कारण इसका दूसरा नाम चन्दनबाला है। इसकी अच्छी तरह से रक्षा करना। यह आगे जाकर धर्म का उद्योत करने वाली होगी और महावीर प्रभु की प्रथम शिष्या होगी। यों कहकर इन्द्र अपने सौधर्म देवलोक में गया। चन्दनबाला वहीं रहने लगी। राजा शतानीक और अन्य लोगों ने उसका बहुत सन्मान किया। कुछ दिनों के बाद जब भगवान् महावीर को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ; तब भगवान् महावीर से चन्दनबाला ने साध्वीदीक्षा ग्रहण की और उनकी प्रथम शिष्या हई। वही आर्या चन्दनबाला साध्वी श्री आर्य सुस्थिताचार्य को जो निकटवर्ती उपाश्रय में विराजमान है, उनको वंदन करने के लिए इस समय जा रही है।' इस प्रकार वृद्धपुरुष ने भिखारी को चन्दनबाला का जीवन वृत्तांत सुनाया। सुनकर उस भिखारी के मन में हर्ष का पार न रहा। वहाँ से वह भिखारी साधुओं के उस उपाश्रय में गया, जहाँ चन्दनबाला साध्वी अपने गुरु को वंदन करने जा रही थी। चन्दनबाला साध्वी वंदन करके अपने उपाश्रय में गयी। गुरुमहाराज ने उस भिक्षुक को देखकर अपने ज्ञान का उपयोग लगाकर जाना कि 30
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy