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________________ चन्दनबाला की कथा श्री उपदेश माला गाथा १४ साध्वी, जिसके सिर के केश लुश्चित थें। वह बहुत-सी साध्वियों से घिरी हुई थीं और बहुत से राजपुरुष उसे वन्दन कर रहे थे। यह देखकर उसके मन में कुतूहल हुआ। अतः साध्वी के पास खड़े एक वृद्ध पुरुष से उसने पूछा कि "यह कौन है? और कहाँ जा रही है?" तब वृद्ध पुरुष ने कहा-ले, स्थिर मन से सुन। मैं इसकी जीवन गाथा सुनाता हूँ चंपानगरी में दधिवाहन नाम का राजा था। उसके अति रूप लावण्य गुणों से युक्त, शील से अलंकृत और माता-पिता को प्राणों से भी अधिक प्रिय वसुमति नाम की पुत्री थी। एक समय किसी कारण से दधिवाहन और कौशाम्बी नगरी के स्वामी शतानीक राजा में परस्पर वैमनस्य हो गया। शतानीक राजा ने विशाल सेना लेकर चंपानगरी पर चढ़ाई की। दधिवाहन भी सेना एकत्रित कर लड़ाई के लिए सामने आया। घोर युद्ध हुआ। बहुत से सैनिक मारे गये। दधिवाहन ने सेना को खत्म होते देखा तो मैदान छोड़कर भाग गया। शत्रु की सेना ने निर्भय होकर अनाथ कामिनी (स्त्री) की तरह चंपापुरी को लूटा। राजा के अन्तःपुर को भी छूटा। उस समय अन्तःपुर में भय से चंचल नाम वाली, अपने समूह से भ्रष्ट हुई हिरनी की तरह दौड़ती हुई राजकन्या वसुमती को किसी पुरुष ने पकड़ा। जब शतानीक राजा की सेना वापिस अपने नगर में आयी, तब उसके साथ वसुमति भी कौशाम्बी में कैदी के रूप में आयी। वह भी वहाँ चौक में बेचने के लिए लायी गयी। उस समय कौशाम्बी निवासी धनावह सेठ ने मूल्य देकर उसे खरीद ली। सेठ उसे देखकर बहुत खुश हुआ और उसने उसे पुत्रीरूप में अपने घर में रखा। एक समय सेठजी के चरण वसुमति धो रही थी। उस समय उसके केश कलाप जमीन पर लटक रहे थे। सेठ ने केशों को ऊपर उठाकर हाथ में थामे रखे। उसी समय सेठ की पत्नी मूला ने यह देखकर विचार किया कि "यह स्त्री अति रूपवती है। सौभाग्य आदि गुणों से युक्त है। इसीलिए मेरा पति इसके रूप से मोहित होकर इसे मेरी सौत बनाकर मेरा अपमान करेगा। अतः इसे दुःख देकर घर से निकाल देना ही ठीक है।" एक दिन सेठ किसी काम से दूसरे गाँव गये थे। मूला सेठानी घर में ही थी। उसने वसुमति का सिर मुंडवाकर पैरों में बेड़ी डालकर और हाथों को हथकड़ियों से जकड़कर घर के भौयरे (तलघर) में छिपा दिया। सेठ घर आये। अपनी पत्नी से पूछा"वसुमति कहाँ है?" उसने कहा- "मैं नहीं जानती, कहीं गयी होगी।" सरल बुद्धि के कारण सेठ ने उसकी बात सच मान ली। इस तरह तीन दिन बीत गये। 28 -
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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