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________________ श्री उपदेश माला गाथा १४ चन्दनबाला की कथा सेवाभक्ति के लिए उसके पीछे-पीछे घूमते थें, वह इतनी पूज्या होने पर भी जरासा भी अहंकार नहीं करती थीं। यह एक आश्चर्य है। वह अच्छी तरह से जानती थी कि यह मेरा प्रभाव नहीं है; यह तो ज्ञान- दर्शन - चारित्र आदि गुणों का ही प्रभाव है। इससे वह गर्व नहीं करती थीं। इसी तरह अन्य साध्वियों को लोकमाननीय होने पर भी अभिमान नहीं करना चाहिए ||१३|| दिणदिक्खियस्स दमगस्स, अभिमुहा अज्ज चन्दणा अज्जा । नेच्छड़ आसणगहणं, सो विणओ सव्वअज्जाणं ॥१४॥ शब्दार्थ - एक दिन के दीक्षित भिक्षुक साधु के सामने आर्या चन्दनबाला साध्वी खड़ी रही, और उसने आसन ग्रहण करने की इच्छा नहीं की। ऐसा विनय सभी साध्वियों के लिए कहा है ।।१४।। भावार्थ - एक दिन का साधु और वह भी पूर्व में (गृहस्थजीवन में) भिक्षुक ( याचक) होने पर भी मुनि वेश ग्रहण करके जब साध्वी चन्दनबालाजी के पास आया; उस समय आर्या चन्दनबाला साध्वी आसन से उठी और उसके सामने गयी। जब तक मुनि खड़े रहे तब तक साध्वी ने आसन पर बैठने की इच्छा नहीं की। ऐसा विनय सभी साध्वियों को भी साधुओं का करना चाहिए || १४ || यहाँ उसकी कथा लिखते हैं चन्दनबाला की कथा जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में समृद्धि और जनता से भरपूर कौशाम्बी नाम की नगरी थी। एक समय बहुत सी साध्वियों से युक्त, श्रावकों से पूजित, धर्ममूर्ति, राजा, सामंत, सेठ - साहूकार और नगरवासियों के द्वारा वन्दनीय श्रीवर्धमान - स्वामी की प्रथम शिष्या आर्या चन्दनबाला कौशाम्बी नगरी के चौराहे से बहुत जनसमूह के साथ जा रही थी। उस समय काळंदी नगरी से कोई दरिद्र वहाँ आया था। उसका शरीर अतिदुर्बल था । उसके मुख पर करोड़ों मक्खियां भिनभिना रही थीं। टूटा हुआ खप्पर हाथ में लेकर घर-घर में वह भीख मांगता फिर रहा था, उस भिक्षुक ने मार्ग में साध्वी चन्दनबाला का वह समूह देखा। उसे देखकर वह विस्मित होकर सोचने लगा- " यह क्या कौतुक है ? यहाँ बहुत से मनुष्य क्यों एकत्रित हुए हैं?" यों सोचता हुआ वह भी कौतुक देखने के लिए उस समूह के पास आया। उसने देखा कि संसार की आसक्ति से रहित, पृथ्वीतल को पवित्र करने वाली, शान्तमूर्ति आर्या चन्दनबाला 1. हेयोपदेया टीका में इसका नाम 'शेडुवक' लिखा है। 27
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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