________________
साध्वी को विनय का उपदेश
श्री उपदेश माला गाथा १२-१३ प्रवाही पदार्थ डालने पर भी वह नहीं निकलता है; वैसी ही स्थिति गुरुमहाराज की होती है। उनके सामने किसी ने अपनी गुप्त बात प्रकट की। उसे वे हृदय में ही रखते हैं। दूसरों के सामने वह गुप्त बात प्रकट नहीं करते। सौम्य अर्थात् जिनके दर्शन से आनन्द प्राप्त होता हो और जिनकी वाणी से प्रसन्नता प्राप्त होती हो । शिष्यादि के लिए वे वस्त्र - पात्र - पुस्तक आदि जुटाने में तत्पर रहते हैं, वह भी केवल धर्मवृद्धि के लिए; लोभवृद्धि के कारण नहीं। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चारों प्रकारों में अभिग्रह बुद्धि रखने वाले, क्योंकि अभिग्रह एक प्रकार का वृत्ति - संक्षेप तप है। फिर वे कम बोलने वाले, अपनी प्रशंसा नहीं करने वाले, स्थिर स्वभाव वाले होते हैं। प्रशान्त हृदय का अर्थ क्रोध - मान माया और लोभ रहित चित्त वाले, यानी शान्तमूर्ति। इस प्रकार के गुणों से गुरुमहाराज शोभायमान होते हैं। ऐसे गुरु विशेष आदरणीय और श्रद्धेय हैं ॥११॥
कइयावि जिणवरिंदा, पत्ता अयरामरं पहं दाउ आयरिएहिं पवयणं, धारिज्जइ संपयं सयलं ॥१२॥
शब्दार्थ - किसी समय जिनवरेन्द्रों ने भव्यजीवों को सन्मार्ग बताकर अजरअमर स्थान प्राप्त किया था। वर्तमानकाल में आचार्यों ने उनकी समस्त सम्पदा और प्रवचन धारण किये हुए हैं ।। १२ ।।
भावार्थ किसी काल में तीर्थंकर भगवान् ज्ञान- दर्शन - चारित्र रूपी मार्ग भव्य जीवों को बताकर जन्म- जरा - मृत्यु - रहित मोक्षस्थान प्राप्त करते हैं। उनकी अविद्यमानता में वर्तमानकाल में चतुर्विधसंघ रूप प्रवचन - तीर्थ अथवा द्वादशांगी रूपी प्रवचन ( आगमसम्पदा) को आचार्य भगवान् धारण करते हैं। तीर्थंकर भगवान् के अभाव में आचार्य ही प्रवर्तक हैं और वे ही शासन की रक्षा करते हैं। अत: आचार्य भगवान् उनके समान पूजनीय माननीय है ॥ १२॥ अब साध्वी को विनय का उपदेश देते हैं
अणुगम्मई भगवई, रायसुअज्जा सहस्सविंदेहिं ।
तहवि न करेइ माणं, परियच्छड़ तं तहा नूणं ॥ १३ ॥ शब्दार्थ श्री भगवती राजपुत्री आर्या चन्दनबाला हजारों साध्वी वृन्दों के सहित होने पर भी अभिमान नहीं करती थीं। क्योंकि वह उसका निश्चय कारण जानती थीं ||१३||
-
भावार्थ दधिवाहन राजा की पुत्री साध्वी चन्दनबाला हजारों साध्वियों तथा जन-समूह से घिरी रहती थीं। अर्थात् हजारों लोग उसकी
26
-