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श्री उपदेश माला गाथा १
मंगलाचरण [टीकाकार का मंगलाचरण] नत्या विभुं सकलकामितदानदक्षं । शंखेचरं जिनवरं जनितासुपक्षम् ॥ - कुर्वे सुबोधितपदामुपदेशमालाम् । बालावबोधकरणक्षमटिप्पनेन ॥१॥
सकल कामनाओं को पूर्ण करने में तत्पर तथा सुपक्ष को उत्पन्न करने (बताने) वाले जिनेश्वर श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान् को नमस्कार कर बाल (अज्ञानी) जीवों को प्रतिबोध करने में समर्थ सरल टिप्पण (टीका) द्वारा उपदेशमाला के पदों को सुगमता से समझने लायक बना रहा हूँ।१।।
मूल गाथा नमिऊण जिणवरिंदे, इंदनरिंदच्चिए तिलोअगुरू ।
उवएसमालमिणमो, वुच्छामि गुरुवएसेणं ॥१॥
शब्दार्थ - देवेन्द्र और नरेन्द्र (राजा) के द्वारा पूजित तथा तीनों लोकों के गुरु श्री जिनवरेन्द्र को नमस्कार कर तीर्थकर, गणधर आदि गुरुजनों के उपदेश से मैं इस "उपदेश माला" को कहूँगा ।।१।।
भावार्थ - उपदेश माला का प्रारम्भ होता है। इसमें "नमिऊण जिणवरिद'' यह प्रथम पद मंगलाचरणरूप है। शुभकार्य के प्रारंभ में मंगलाचरणः करना चाहिए; जिससे विघ्नों का नाश हो। दूसरे पद में जिनेश्वर देव की विशेषता बतायी है। तीसरे पद में अभिधेय (नाम) बताया है और चौथे पद में अहं के अध्याहार से ग्रन्थ को स्वयं ने प्रारंभ किया है। "नमिऊण" इस शब्द का अर्थ है-"नमस्कार करके!" किसको नमस्कार करके? श्री जिनवरेन्द्र में इन्द्र अर्थात् सामान्य केवली को नहीं, परंतु श्री तीर्थंकर परमात्मा को। वें तीर्थंकर भगवान् कैसे हैं? असंख्य देवताओं के स्वामी इन्द्र और राजा, महाराजा, चक्रवर्ती आदि से पूजित। फिर वे कैसे हैं? पाताल, मृत्यु और स्वर्ग तीनों जगत के प्राणियों को मोक्षमार्ग का हितोपदेश देने के कारण त्रिलोकगुरु हैं। यहाँ भगवान् को गुरु की उपमा दी है। ऐसे जिनवरों में श्रेष्ठ को नमस्कार कर, मैं अर्थात् धर्मदास गणि क्षमाश्रमण, इस 'उपदेश माला'-उपदेश की श्रेणि को कहूँगा। वह भी अपनी बुद्धि की कल्पना से नहीं, अपितु श्रीतीर्थंकरगणधर आदि गुरुजनों के उपदेश के अनुसार कहूँगा। इस कथन से ग्रन्थ के सम्बन्ध में आप्तता बतायी है ।।१।।
दूसरी गाथा में भी मंगलाचरण करते हैं
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