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प्रतिबोधकुशल नंदीषेणमुनि की कथा
श्री उपदेश माला गाथा २४८ यहाँ प्रसंगवश नंदीषेणमुनि के जीवन की घटना दे रहे हैं
प्रतिबोधकुशल नंदीषेणमुनि की कथा नंदीषेण के पूर्वजन्म का संक्षिप्त वृत्तांत इस प्रकार है- 'मुखप्रिय नामक एक ब्राह्मण किसी गाँव में रहता था। उसने एक बार लाख ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प कर लिया। फिर उसने सोचा- 'ब्राह्मणों को भोजन आदि परोसने एवं घर का कामकाज करने के लिए एक अच्छा-सा ईमानदार नौकर मिल जाय तो बहुत अच्छा हो।" फलतः उसने अपने पड़ोस में रहने वाले भीम' नामक दास से इस बारे में पूछा। उसने कहा- 'मैं आपके घर का कामकाज इसी शर्त पर कर सकता हूँ कि ब्राह्मणों का भोजन हो जाने के बाद बचा हुआ सारा अन्नादि आप मुझे दे दें।" मुखप्रिय ने उसकी बात मंजूर कर ली। अब भीम उसके घर का कामकाज करने लगा और ब्राह्मणों के भोजन के बाद बचे हुए शेष भोजन को ले जाता। वह इस अवशिष्ट भोजन को शहर में बिराजित साधु-साध्वियों को बुला बुलाकर भिक्षा के रूप में दे देता था। इस पुण्य के प्रभाव से आयुष्य पूर्ण कर वह दास का जीव दिव्य सुखभोग वाले देवलोक का देव बना। वहाँ से च्यव कर वह राजगृह नगर में राजा श्रेणिक के यहाँ नंदीषेण नाम से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ।
इधर लाख ब्राह्मणों को भोजन कराने वाले ब्राह्मण का जीव अनेक भवों. में भ्रमण करने के बाद किसी अटवी में एक हथनी की कुक्षि में पैदा हुआ। हथनियों का स्वामी यूथपति (हाथी) किसी हथनी के जो भी बच्चा (हाथी) होता, उसे पैर के नीचे कुचल कर मार देता था। अतः उस हथनी ने सोचा- "मेरे गर्भ में इस बार जो बच्चा है, उसे मैं ऐसी जगह जन्म दं, ताकि यूथपति को पता न लगे और वह उसे मारे नहीं। अगर वह बचा रहा तो भविष्य में वही यूथपति बन जायगा।" हथनी ने मन ही मन उपाय सोचा और वह झूठमूठ ही एक पैर से लंगड़ाती हुई चलने लगी। इस कारण वह कभी एक पहर से, कभी दो पहर से, कभी एक-दो दिन के बाद अपने टोले में जा कर मिलती थी। यों करते-करते जब प्रसवकाल नजदीक आया तो वह एक तापस-आश्रम में पहुँच गयी और वहीं शिशुहाथी को जन्म दिया; और पुनः जाकर अपने टोले में मिल गयी। उसके पश्चात् वह रोजाना अपने टोले में सबसे पीछे रहकर अपने शिशु को स्तनपान कराने तापसों के आश्रम में चली जाती और वापिस सहजभाव से आकर अपने टोले में मिल जाती। इस प्रकार उसने गुप्त रूप से हस्तिशिशु का संवर्द्धन किया। तापस भी उसे 314