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रणसिंह का चरित्र
श्री उपदेश माला आप इतना विलंब क्यों कर रहे है? कुमार ने कहा यहाँ पर मुझे थोड़ा कार्य है, तुम आगे चलो। मैं पीछे शीघ्र ही आ रहा हूँ।
भीम राजा का पुत्र कनकसेन राजा की सेवा में उपस्थित था। वह कमलवती पर मोहित था, किंतु कमलवती उसे लेशमात्र भी नही चाहती थी। एकबार जब कमलवती यक्ष पूजा करने निकली तब भीम पुत्र भी उसके पीछेपीछे चला। मैं अपने मन की बात इससे कहूँगा, ऐसा विचारकर वह मंदिर के बाहर खड़ा रहा। यदि यह पुरुष अंदर आने की कोशिश करे तो उसे रोकना इस प्रकार अपनी दासी से कहकर कमलवती मंदिर में गयी। कमलवती ने एकांत में अपने दोनों कानों में जटिका का प्रयोग कर पुरुष रूप में बाहर आयी। उसे आते देखकर कुमार ने पूछा-हे देवपूजक! अभी तक कमलवती बाहर क्यों नही आयी? उसने कहा- मैंने तो इस दासी सिवाय अन्य किसी को मंदिर में प्रवेश करते नहीं देखा। कुमार ने उसे मंदिर में अनेकबार ढूंढा। कमलवती के नहीं मिलने पर वह स्वस्थान लौट आया। कमलवती ने कानों से जटिका हटायी और अपने मूल रूप में प्रकट हुई। दासी ने पूछा-स्वामिनी! आप यहाँ? इसका क्या रहस्य है? उसने जटिका का स्वरूप कहा। दासी ने पूछा-स्वामिनी! आपको ऐसी जटिका कहाँ से मिली? कमलवती ने कहा--सुनो!
- एकबार मैं यक्ष मंदिर में पूजा करने आयी थी। तब वहाँ एक विद्याधर-विद्याधरी का युगल आया था। विद्याधरी ने मुझे ध्यान में लयलीन देखकर सोचा-यदि पति इसका अद्भुत रूप देखेगें तो इस पर मोहित हो जाएँगे, ऐमा विचारकर उसने मेरे कानों में जटिका बांधी। जब मैं पूजा करने गयी तो खुद को पुरुष रूप में देखकर चौंक पडी। मैंने संपूर्ण शरीर का निरीक्षण किया। कानों में जटिका देखी। जब उसे बाहर निकाली तो वापिस अपने मूल स्वरूप में आ गयी। उसी जटिका के प्रभाव से ही मैं आज पुरुष का वेष धारण कर मंदिर के बाहर आयी थी। इस प्रकार कमलवती ने जटिका का स्वरूप दासी से कहा। भीम राजा के पुत्र ने बहुत उपाय कीयें परंतु वह सफल नही हुआ। तब उसने कमलवती की माता से अपना अभिप्राय निवेदन किया। माता ने सोचा-यह महान् राजपुत्र है। पुत्री का विवाह इसके साथ करना उचित है, ऐसा विचारकर उसने अपने पति से यह बात कही। राजा ने उसकी बात स्वीकार की। दूसरे दिन ही लग्न निश्चित हुआ। कमलवती यह जानकर बहुत दुःखी हुई। वह न खाती, न सोती, न बोलती और न ही हँसती।
गुप्तरीति से महल से बाहर निकलकर यक्ष मंदिर में गयी और उसे उपालंभ देते हुए कहने लगी- हे यक्ष! देवों में प्रधान ऐसे आपको अपने वचनों के विपरीत वर्तन करना यह योग्य नही है। कहा गया है कि