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श्री उपदेश माला
रणसिंह का चरित्र होगी। सभी राजा युद्ध करने के लिए तैयार हुए। रणसिंह अपने हल से युद्ध करने लगा। देव प्रभाव से हल के प्रहार से राजा जर्जरीत होने लगें और मैदान छोडकर भागने लगे। कनकशेखर राजा ने आश्चर्य से पूछा - स्वामी! आपने आश्चर्यकारी काम किया है, अपना स्वरूप प्रकाश करे? उसी क्षण यक्ष ने प्रत्यक्ष होकर रणसिंह का चरित्र कह सुनाया। कनकशेखर राजा यह सुनकर अत्यंत हर्षित हुआ और बड़े आडंबर के साथ कन्या का विवाह संपन्न किया। वस्त्र आदि भेट देकर उसने सभी राजाओं का सन्मान किया। वे सभी अपने-अपने स्थान पर लौट चलें। कनकशेखर राजा ने अपने जमाई को देश का एक राज्य समर्पित किया।
सुंदर नामक अपने पालक पिता को बुलाकार, रणसिंह ने उसे उचित राज्याधिकारी बनाया। सोमा नाम की महानगरी में पुरुषोत्तम राजा राज्य कर रहा था। उसकी रत्नवती पुत्री थी। वह कनकशेखर राजा की भानजी थी। उसने कनकवती के पाणिग्रहण का सर्व स्वरूप जान लिया। रणसिंह को छोड़कर मैं किसी अन्य के साथ विवाह नही करूँगी, इस प्रकार उसने नियम ग्रहण किया। अपनी बेटी का निश्चय जानकर पुरुषोत्तम राजा ने अपने प्रधानपुरुष रणसिंह के पास भेजें, उन्होंने रणसिंह के पास जाकर यह बात कही। रणसिंह ने कहाकनकशेखर राजा इसका निर्णय करेंगें, मैं कुछ भी नही जानता। तब प्रधानपुरुष कनकशेखर राजा के पास गएँ। कनकशेखर राजा ने सोचा - रत्नवती मेरी भानजी है। इसलिए इसके विवाह की चिंता मुझे करनी चाहिए, ऐसा विचारकर रणसिंह से कहा- तुम्हे रत्नवती से विवाह करने के लिए जाना चाहिए। उसने यह बात स्वीकार की। अपने परिजनों के साथ रत्नवती से विवाह करने के लिए रणसिंह चला। मार्ग में चलते हुए पाडलीखण्डपुर समीप के उपवन में चिन्तामणियक्ष का मंदिर था । यक्ष को नमस्कार कर वहाँ पर ठहरा। उस समय रणसिंहकुमार की दाई आंख फड़की । तब उसने मन में सोचा - यहाँ पर कोई इष्ट मिलन होनेवाला है। पाडलीखण्डपुर में कमलसेन राजा राज्य कर रहा था। उसकी कमलिनी पत्नी थी। उन दोनों की पुत्री कमलवती थी। कमलवती सुमंगला दासी के साथ सुगंधी पुष्प आदि पूजा के उपकरण ग्रहण कर यक्ष मंदिर में आयी। उसने वहाँ पर रणसिंहकुमार को देखा। कुमार ने सस्नेह उसे देखा । यक्ष की पूजा कर बार-बार कुमार के संमुख देखती हुई कमलवती अपने महल लौट आयी। दूसरे दिन यक्ष की पूजा कर रणसिंह मेरा पति हो ऐसा वरदान मांगा, यक्ष ने यही तेरा पति होगा कर कहा - फिर वीणावादनपूर्वक मधुर स्वर में गाने लगी । कुमार उसका गीत-गान सुनकर मन में सोचने लगामेरा जन्म तब ही सफल होगा, जब मैं इससे विवाह करूँगा, अन्यथा इस जीवन से क्या प्रयोजन है? पुरुषोत्तम राजा के प्रधान पुरुषों ने आकर विज्ञप्ति की स्वामी !
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