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श्री उपदेश माला गाथा १८२
सुकुमालि का दृष्टांत आतापना के सहित छट्ठ-अट्ठम (दो-तीन उपवास) आदि तप करती रहती थी। ऐसा करके वह अपने अनुपम सौंदर्य के आकर्षण और गर्व को नष्ट करना चाहती थी। इसके बावजूद भी उसके अनुपम रूप से आकर्षित होकर कई रूप लोलुप कामी (पुरुष रूप में) भौरे वहाँ हर समय मंडराते रहते थें, कई तो सामने ही बैठे रहते थे और अपनी विषयलालसा उसके सामने प्रकट करते थे। यह देखकर अन्य साध्वियाँ सुकुमालिका साध्वी को उपाश्रय के अंदर ही बिठाये रखती; बाहर जाने नहीं देती थीं। फिर भी उसके रूप से मोहित होकर कुछ कामी पुरुष उपाश्रय के द्वार पर आकर ही जम जाते और उसका मुख देखने की लालसा से उन्मत के समान घूरते और घूमते रहते। इससे तंग आकर साध्वियों ने आचार्य महाराज से निवेदन किया- "गुरुदेव! इस सुकुमालिका के सच्चरित्र की रक्षा करने में हम लाचार है। हमने बहुतेरे उपाय कर लिये, फिर भी रूप लोलुप कामी जवान उपाश्रय में आकर उपद्रव मचाते हैं, आवाजें करते हैं। हमने उन्हें बहुत रोका, लेकिन वे मानते ही नहीं। अब बताइए, हम क्या करें?" यह सुनकर आचार्यश्रीजी ने सुकुमालिका के भाई मुनि ससक और भसक को बुलाकर कहा- "वत्स! तुम साध्वियों के उपाश्रय में जाओ और अपनी साध्वीबहन की रक्षा करो। शीलपालन में उसकी सहायता करने से तुम्हें महान् लाभ होगा।" इस तरह गुरु की आज्ञा शिरोधार्य करके वे दोनों मुनिभ्राता वहाँ जाकर साध्वीबहन की रक्षा करने लगे। उनमें से एक तो निरंतर उपाश्रय के दरवाजे पर बैठा रहता और दूसरा गोचरी आदि के लिए जाता था।
एक दिन रूप लोलुप जवानों के साथ उनकी लड़ाई हो गयी। यह देखकर साध्वी सुकुमालिका ने विचार किया- "धिक्कार है मेरे रूप को; जिसके कारण मेरे भाईयों को अपना स्वाध्याय, ध्यान, अध्ययन आदि छोड़कर मेरे लिये इतना क्लेश सहन करना पड़ता है।'' अतः इस रूप को ही सर्वथा खत्म करने के लिए अब मैं अनशन कर लूं। इसी शरीर के लिए ये कामी पुरुष बेचैन होते हैं; जब इस शरीर का ही त्याग कर दूंगी तो यह झंझट ही खत्म हो जायगा। यों सोचकर सुकुमालिका ने अनशन अंगीकार कर लिया। जैसे मालती का पुष्प थोड़े ही दिनों में मुझ जाता है, वैसे ही उसका शरीर भी कुछ ही दिनों में मुर्दा गया और एक दिन श्वास के रुक जाने से उसे मूर्छा आ गयी। मूर्छा के कारण उसके भाईयों ने उसे मृत समझकर गाँव के बाहर वन की भूमि में जाकर परिष्ठापन कर (डाल) दिया। संयोगवश वन की ठंडी-ठंडी हवा लगने से सुकुमालिका में चेतना आई। बेहोशी दूर हो गयी। उसने खड़े होकर चारों तरफ
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