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पुष्पचूला की कथा
श्री उपदेश माला गाथा १७० विचार करने लगी कि "यह मेरे पूर्व जन्म के पुत्र-पुत्री इस प्रकार के पापकर्म करके नरक में जायेंगे, इसीलिए मैं इनको प्रतिबोध दूं। ऐसा सोचकर उसने अपनी पुत्री पुष्पचूला को रात को स्वप्न में नरक के दुःख बताये। उसे देखकर वह भयभीत हुई और सुबह उसने अपने पति राजा को स्वप्न की बात कही। राजा ने भी नरक का स्वरूप पूछने के लिए अन्यधर्मी योगियों आदि को बुलाया और नरक का स्वरूप पूछा।' उन्होंने कहा- 'राजन्! शोक, वियोग, रोग और भोग में पराधीनता आदि में ही नरक के दुःख जानना।' तब पुष्पचूला रानी ने कहा- 'मैंने जो दुःख रात को स्वप्न में देखा था, उससे तो भिन्न है।' उसके बाद राजा ने अर्णिकापुत्र आचार्य को बुलाकर पूछा-"स्वामिन्! नरक के दुःख कैसे होते हैं?" रानी ने नरक के जैसे दुःख स्वप्न में देखे थे वैसे ही आचार्य महाराज ने बताये। उसे सुनकर आश्चर्यचकित होकर रानी ने पूछा- 'स्वामिन्! क्या आपने भी ऐसा कोई स्वप्न देखा है, जिससे मैंने स्वप्न में नरक का जैसा स्वरूप था, वैसा ही आपने बताया।' आचार्यश्रीजी ने कहा- 'मैंने स्वप्न तो नहीं देखा, परंतु आगम-वचन से जानता हूँ।" पुष्पचूला-"किस कर्म से ऐसे दुःख प्राप्त होते हैं?" गुरुमहाराज ने कहा- "पाँच आश्रव के सेवन करने से तथा काम-क्रोध आदि पापाचरण से जीव को नरक के दुःख मिलते हैं।" इस प्रकार समाधान करके गुरुमहाराज अपने स्थान पर लौट गये। दूसरे दिन पुष्पचूला रानी को देव बने हुए माता के जीव ने स्वप्न में देवताओं के सुख बताये। प्रातःकाल रानी ने उस स्वप्न की बात राजा से कही। राजा ने अन्य दर्शनियों को बुलाकर पूछा-'स्वर्ग का सुख कैसा होता है?' तब उन्होंने कहा-'हे राजन्! उत्तम प्रकार के भोजन, श्रेष्ठ वस्त्र-परिधान, प्रियजनों का संयोग, उत्तम अंगनाओं के साथ विलास इत्यादि स्वर्ग के सुख हैं।' तब रानी ने कहा 'जो स्वर्ग के सुख मैंने स्वप्न में देखे थे उनका तो इनके साथ कोई मेल नहीं है। आप लोगों के बताये हुए सुखों की उन सुखों के साथ असंख्यातवें भाग की तुलना भी नहीं हो सकती।' फिर राजा ने आचार्यश्री अर्णिकापुत्र को बुलाकर स्वर्ग के सुख का स्वरूप पूछा। रानी ने स्वप्न में जैसा देखा था वैसा ही स्वर्ग के सुख का उन्होंने हूबहू वर्णन किया। रानी ने पूछा-"गुरुवर! ऐसे सुख कैसे प्राप्त हो सकते हैं?" गुरु महाराज ने कहा- "साधुधर्म की आराधना करने से प्राप्त हो सकते हैं।' इसके बाद धर्म का यथार्थ स्वरूप जानने से पुष्पचूला को संसार से वैराग्य हो गया और उसने चारित्र ग्रहण करने के लिए जब पति से आज्ञा माँगी, तब राजा ने कहा। "तूं मुझे अत्यंत प्रिय है, तेरा वियोग मुझसे सहन नहीं हो सकेगा। ऐसी दशा में मैं तुझे दीक्षा लेने की आज्ञा कैसे दे सकता हूँ?'' रानी ने 280