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________________ श्री उपदेश माला गाथा १७० पुष्पचूला की कथा सूअर के समान संसार में होने वाली विविध विडंबनाओं को नहीं समझते। क्योंकि विषयासक्त जीव विषय को ही सारभूत गिनते हैं। परंतु लघुकर्मी जीव सिर्फ स्वप्न को देखने मात्र से अनायास ही प्रतिबुद्ध हो जाते है; जैसे पुष्पचूला को अनायास प्रति बोध हुआ था। पुष्पचूला नाम की रानी ने स्वर्ग और नरक का स्वरूप स्वप्न में देखकर ही विषयसुख से विरक्त होकर संयम अंगीकार किया था ।।१७०।। ऐसे भी बहुत से जीव होते हैं। यहाँ पुष्पचूला की कथा दे रहे हैं पुष्पचूला की कथा पुष्पभद्र नाम के नगर में पुष्पकेतु नाम का राजा राज्य करता था। उसके पुष्पवती नामकी पटरानी थी। एक दिन उसने पुत्र-पुत्री के रूप में एक जोड़े को जन्म दिया। पुत्र का नाम पुष्पचूल रखा, और पुत्री का नाम पुष्पचूला रखा। कालक्रम से उन दोनों ने युवावस्था प्राप्त की। दोनों सर्व कलाओं में कुशल हुए। उन दोनों में परस्पर अतिस्नेह होने से वे एक दूसरे से एक क्षण भी अलग नहीं रह सकते थे, यह देखकर एक दिन उनके पिता (राजा) ने विचार किया- 'एक साथ जन्मे हुए मेरे ये पुत्र-पुत्री परस्पर गाढ़ स्नेह वाले हैं। इसीलिए यदि मैं पुत्री की शादी अन्य स्थान पर करूँगा तो इनके स्नेह का भंग होगा। अतः इन दोनों का परस्पर विवाह संबंध हो जाय तो इन का कभी वियोग नहीं होगा।' ऐसा विचारकर नगरवासियों को राजसभा में बुलाकर राजा ने पूछा- "मेरा एक प्रश्न है, उसका ठीक जवाब दो। अन्तःपुर में उत्पन्न हुए रत्न को स्वेच्छा से जोड़ने में कौन समर्थ है?" उसे सुनकर राजा के आशय को कोई जान नहीं सका। प्रधानमंत्री आदि ने कहा-'राजन्! संसार में जो-जो रत्न उत्पन्न होते हैं, उन्हें दूसरे के साथ जोड़ने में राजा ही समर्थ हो सकता है। अतः अन्तपुर में उत्पन्न हुए रत्न को जोड़ने में राजा ही समर्थ हो इसमें कहना ही क्या?' इस तरह छल से राजा ने अपनी प्रजा की सहमति प्राप्त की। पर अन्तःपुर की स्त्रियाँ मना करती रही, मगर राजा ने उन दोनों भाई-बहनों का विवाह-संबंध कर दिया। ऐसा अयोग्य कार्य देखकर उन दोनों की माता रानी पुष्पवती को वैराग्य हुआ और दीक्षा लेकर कठोर तप करके मरकर वह देवरूप में उत्पन्न हुई। पुष्पकेतु राजा भी आयुष्य पूर्णकर परलोक गया। अतः पुष्पचूलकुमार राजा हुआ। उसने अपनी बहन पुष्पचूला को पटरानी बनाई और उसके साथ विषयसुखों का आनंद प्राप्त करते हुए समय व्यतीत करने लगा। .. एक समय देव बने हुए पुष्पचूल की माता के जीव ने अवधिज्ञान से पूर्वजन्म देखा। पूर्वजन्म के पुत्र पुत्री को देखकर उसे प्रीति उत्पन्न हुई और मन में = 279
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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