________________
श्री मेघकुमार की कथा
श्री उपदेश माला गाथा १५३-१५४ सुहस्तिसूरि से पूछा- "जिनका आपने इतना विनय किया, ये महामुनि कौन हैं?" आर्य सुहस्तिसूरि ने कहा- "यह मेरे बड़े गुरुभाई है। ये महाप्रभावशाली जिनकल्पीचर्या की तरह आचरण करते हैं।" यह सुनकर दूसरे दिन वसुभूति श्रावक ने अपने यहाँ उत्तम आहार बनवाकर सारे नगर को भोजन करवाया। आर्य महागिरि ने उस आहार को अकल्पनीय जानकर ग्रहण नहीं किया। फिर उपाश्रय में आकर उन्होंने आर्य सुहस्तिसूरि को उपालंभ दिया- "मुनिवर! आपने वसुभूति के यहाँ खड़े होकर विनय किया, यह बहुत अनुचित किया; क्योंकि उसने फिर भक्ति के वश सर्वत्र अशुद्ध आहार बनवा लिया। अतः अब से मेरा आपके साथ एक क्षेत्र में इकट्ठे रहना ठीक नहीं।" यों कहकर आर्य महागिरि ने पृथक विहार कर दिया। और गच्छ का आश्रय छोड़कर वे एकाकी तपसंयम की आराधना करके देवलोक में पहुँचे। इसी प्रकार अन्य मुनियों को भी अप्रतिबद्ध-विहारी होना चाहिए ॥१५२।।
रूवेण जुब्बणेण य, कन्नाहि सुहेहिं वरसिरीए य । न य लुब्भंति सुविहिया, निदरिसणं जम्बुनामुति ॥१५३॥
शब्दार्थ - जो सुविहित साधु होते हैं, वे रूप और यौवन से संपन्न कन्याओं में, सांसारिक सुखों में तथा पर्यास संपत्ति प्रास होने पर भी उसमें लुब्ध नहीं होते। इस विषय में जम्बूकुमार उत्तम नमूने हैं ।।१५३।।
भावार्थ - जम्बूकुमार ८ रूपवती यौवन संपन्न कन्याओं के, एवं ९९ करोड़ स्वर्णमुद्राओं के स्वामी होते हुए भी, उनका एकदम त्याग कर दिया और मुनि दीक्षा स्वीकार कर ली। परंतु सांसारिक सुखसंपदा में वे आसक्त नहीं हुए। जम्बूकुमार मुनि की कथा पहले आ चुकी है ॥१५३॥
उत्तमकुलप्पसूया, रायकुलवडिंसगा वि मुणियसहा ।
बहुजणजइसंघट्ट, मेहकुमारु व्य विसहति ॥१५४॥
शब्दार्थ - उत्तमकुल में उत्पन्न, राजकुल के भूषण और मनियों में श्रेष्ठ श्री मेघकुमार मुनि बहुत-से अन्य मुनियों के पैरों की ठोकर आदि से होने वाला कठोर स्पर्श सहन करते हैं। इसी तरह अन्य मुनियों को भी सहन करना चाहिए ।।१५४।।
श्री मेधकुमार की कथा मगधदेश की राजधानी राजगृही नगरी में राजा श्रेणिक का राज्य था। उसके धारिणी नाम की रानी थी। एक बार उसके गर्भ में स्थित शिशु के प्रभाव से उसे अकाल में ही मेघवृष्टि होने का दोहद हुआ। मंत्री अभयकुमार ने अट्ठम 1. संवेगरंगशाला में साथ-साथ विहार का वर्णन है। 264