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स्वजन भी अनर्थकर, पिता कनककेतु राजा की कथा श्री उपदेश माला गाथा १४६ पतिभक्ता उसकी प्राणप्रिया थी। राज्यसुख में निमग्न कनककेतु के एक पुत्र हुआ। पुत्र होने के बाद उसने सोचा- 'यह बड़ा होते ही मेरा राज्य ले लेगा। इसीलिए अभी से ही इसका इंतजाम करना चाहिए, ताकि यह राज्य ग्रहण न कर सके। फलतः उसने अपने पुत्र के दोनों हाथ काट डाले। जब दूसरा पुत्र जन्मा तो उसके पैर काट दिये। इस तरह ज्यों-ज्यों पुत्र होते गये वह क्रमशः उनके किसी का कान तो किसी का नाक अथवा किसी की आँखें निकाल देता। इस तरह राजा कनककेतु ने राज्यलिप्सु बनकर सभी पुत्रों के अंगभंग कर डाले। यों करते-करते काफी अर्सा (समय) बीत गया। एक बार पद्मावती को एक शुभस्वप्न दिखाई दिया। उसने गर्भधारण किया, उसी दिन मंत्रीपत्नी पोट्टिला ने भी गर्भधारण किया। रानी ने मंत्री को गुप्तरूप से बुलाकर सूचित किया कि "मैं शुभस्वप्न के साथ इस बार गर्भवती हुई हूँ। अतः पुत्रजन्म होते ही आप उस बालक को चुपके से अपने यहाँ ले जाना
और उसकी सुरक्षा करना, ताकि वह भविष्य में इस राज्य का उत्तराधिकारी हो सके और आप सबका भी आधार बनें।" मंत्री ने बात मंजूर की। योग्य समय पर .रानी के पुत्र का जन्म हुआ। मंत्री ने गुप्त रूप से उस राजपुत्र को ले जाकर अपनी धर्मपत्नी पोट्टिला को पालनपोषण के लिए सौंप दिया। और उसी समय पोट्टिला के जो पुत्री उत्पन्न हुई थी, उसे उसने रानी को सौंप दी। दासी ने राजा को सूचित किया-'रानी के पुत्री का जन्म हुआ है।'
राजपुत्र धीरे-धीरे मंत्री के यहाँ बड़ा होने लगा। मंत्री ने उसका नाम कनकध्वज रखा। जब वह जवान हुआ और उसी समय राजा कनककेतु की मृत्यु भी हो गयी। राजा की आकस्मिक मृत्यु से सभी सामंतों को यह चिन्ता हुई कि 'अब राज्य किसको सौंपा जाय; क्योंकि राजा ने जितने पुत्र हुए सभी के अंगभंग कर दिये हैं। राज्य के योग्य किसी को न रखा।' मंत्री ने उस समय राजसभा में सबके सामने यह रहस्योद्घाटन किया कि कनकध्वज राजा का ही पुत्र है। गुप्त रूप से यह मेरे यहाँ पाला गया है। इसे ही राजगद्दी पर बिठा दिया जाय। यह सुनकर सभी खुश हुए और उसे राजगद्दी देने में सहमत हुए। अतः शुभमुहूर्त में राज्याभिषेक करके उसे राजगद्दी पर बिठा दिया गया। कनकध्वज राजा भी मंत्री को अपना परम-उपकारी जानकर उनका बहुत आदर किया करता था और आनंदपूर्वक राज्यपालन करता था। एक दिन मंत्रीपत्नी पोट्टिल, जो पहले मंत्री को प्राणों से अधिक प्रिय थी, अपने अशुभकर्मों के कारण मंत्री को अप्रिय हो गयी। मंत्री ने उसकी शय्या एक अलग कमरे में पृथक् करवा दी, जिससे पोट्टिला के मन में रह-रहकर बड़ा संताप होता था। कहा भी है
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