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________________ श्री उपदेश माला गाथा १०० सुनक्षत्रमुनि की कथा श्री सुनक्षत्रमुनि का दृष्टांत एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी श्रावस्ती नगरी में पधारें। गोशालक भी उसी नगरी में आया। नगरी में यह अफवाह फैली कि 'आज नगर में दो सर्वज्ञ पधारें हैं। एक श्रमण भगवान् महावीर और दूसरे मंखलीपुत्र गोशालका' गौचरी के लिए गये हुए श्री गौतम स्वामी ने यह बात सुनी तो आते ही उन्होंने भगवान् से पूछा- "गुरुदेव! यह गोशालक कौन है? जिसकी मनुष्यों में सर्वज्ञ के नाम से चर्चा हो रही है!" भगवान् ने कहा-गौतम! सुनो, सरवण नाम के गाँव में मंख जाति का एक पुरुष रहता था। उसके भद्रा नाम की पत्नी थी। उसकी कुक्षि से इसका जन्म हुआ है। बहुतसी गायों के रखने वाले एक ब्राह्मण की गौशाला में जन्म होने से इसका नाम गोशालक रखा गया था। जब यह जवान हुआ, उस समय छद्मस्थावस्था में मेरा राजगृही चातुर्मास था। वह भी घूमता हुआ वहाँ आ पहुँचा। वहाँ मेरा चार महीने के उपवासों का पारणा खीर से हुआ। उसकी महिमा देख उसने विचार किया कि 'यदि मैं भी इनका शिष्य हो जाऊं तो मुझे भी सदा मिष्टान्न खाने को मिलेंगे। अतः मुझ से कुछ भी पहले परामर्श किये बिना 'मैं आपका शिष्य हूँ' कहकर यह मेरे साथ चल पड़ा। ६ वर्ष तक यह मेरे साथ रहा। एक समय किसी तापस को देखकर इसने उसकी मजाक उड़ाई 'यह तो मुंओं का घर है।' ऐसा कहकर यह ठहाका मारकर हंसने लगा। इससे तापस ने क्रोधित होकर गोशालक पर तेजोलेश्या छोड़ी। मैंने उस पर फौरन शीतलेश्या छोड़ी, जिससे इसकी रक्षा हुई। तब इसने तेजोलेश्या उत्पन्न करने का उपाय पूछा। मैंने भी भवितव्यता जानकर इसे तेजोलेश्या की विधि बताई। अतः मुझसे अलग होकर छह महीने तक कष्ट सहकर उसने तेजोलेश्या की साधना की और अष्टांग निमित्त का भी किसी से ज्ञान प्राप्त किया। इस तरह से अब यह लोगों के सामने अपने आपको सर्वज्ञ बताता फिरता है; परंतु यह झूठा है। यह जिन नहीं है और न ही सर्वज्ञ है। भगवान् की बात सुनकर त्रिक (तिराहे-जहाँ तीन मार्ग इकट्ठे होते हैं उस जगह) और राजमार्ग में सभी लोग चर्चा करने लगे 'यह गोशालक सर्वज्ञ नहीं है?' यह सर्व वृत्तांत किसी मूर्ख से गोशालक ने सुना तो वह क्रोध से आगबबूला हो उठा। उस समय आनंद नाम का एक साधु गौचरी के लिए जाता हुआ उसने देखा। उसे बुलाकर गोशालक ने कहा-'आनंद! मैं तुम्हें एक दृष्टांत सुनाता हूँ, सुनो! कई व्यापारी मिलकर अनेक प्रकार का माल गाड़ियों में भरकर धन कमाने == 189
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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