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गुरु सेवा एवं उद्धारक गुरु
श्री उपदेश माला गाथा १०० चलें। जब उन्होंने अटवी में प्रवेश किया तब उन्हें वहाँ बड़े जोर की प्यास लगी। पानी की खोज करते-करते एक जगह उन्होंने चार बांबियाँ देखी। उसमें से एक बांबी के शिखर को फोड़ा तो उसमें से गंगाजल जैसा निर्मल पानी निकला। सभी ने प्यास बुझाई और रास्ते के लिए जलपात्र भर लिये। जब दूसरा शिखर तोड़ने लगे तो साथ में चल रहे एक वृद्ध वणिक् ने कहा-'भाईयों! हमारा काम हो गया है, अब दूसरी बांबी के शिखर को फोड़ने की आवश्यकता नहीं है।' इसके बावजूद भी उन्होंने दूसरी बांबी फोड़ डाली। उसमें से बहुत-सा सोना मिला। वृद्ध के मना करने पर भी उन्होंने तीसरा शिखर फोड़ा। उसमें से बहुत से रत्न निकले। बूढे बनिये के रोकने की परवाह न करके उन्होंने चौथी बांबी भी फोड़ डाली। उसमें से एक अतिभयंकर दृष्टिविष सर्प निकला। उसने सूर्य के सामने देखा और उनके ऊपर दृष्टि बैंककर हितोपदेशक बढे बनिये को छोड़कर सभी को मौत के घाट उतार दिया। इसीलिए हे आनंद! तुम्हारे धर्माचार्य को ऋद्धि प्राप्त होने पर भी संतोष नहीं है, वह मुझसे ईर्ष्या करता है। मैं अपने तप-तेज से उसे भस्म कर डालूंगा। परंतु उस वृद्ध वणिक् के समान हितोपदेशक समझकर मैं तेरी रक्षा करूँगा।" यह बात सुनकर आनंद भयभीत हुआ और भगवान् के पास जाकर उसने सारा वृत्तांत कहा। भगवान् बोले-'आनंद! तूं शीघ्र ही गौतमादि मुनियों से जाकर कह कि वह गोशालक यहाँ आ रहा है; अतः उसके साथ कोई भी संभाषण न करे। और तुम सब यहाँ से इधर-उधर चले जाओ।" आनंद ने भगवान् की आज्ञानुसार वैसा ही . किया।
इतने में गोशालक वहाँ आ धमका और भगवान् से कहने लगा-"अरे काश्यप! तुम मुझे अपना शिष्य बताते हो; लेकिन यह असत्य है। जो तुम्हारा शिष्य था वह तो मर चुका है। मैं तो और ही हूँ। मैं तो उसके शरीर को बलवान जानकर उसमें प्रविष्ट होकर रह रहा हूँ।' किन्तु गोशालक द्वारा किया जा रहा प्रभु का तिरस्कार न सह सकने से तथा गुरु- भक्तिवश सुनक्षत्र नाम के साधु ने गोशालक से कहा- 'अरे! तुम हमारे धर्माचार्य की निंदा क्यों करते हो? तुम वही गोशालक हो, दूसरे नहीं' यह सुनते ही गोशालक ने क्रोधित होकर तेजोलेश्या का प्रयोग करके सुनक्षत्रमुनि को भस्म कर दिया। वह समाधियुक्त मरकर आठवें देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुआ। उस समय सर्वानुभूति नाम का एक दूसरा साधु भी सर्व जीवों से क्षमायाचना करके अनशन ग्रहण कर गोशालक के सामने आया और बोला- 'जानते हो, हमारे धर्माचार्य की निंदा करने का क्या फल मिलेगा?' दुष्ट गोशालक ने उसको भी जला दिया। वह मरकर बारहवें देवलोक में उत्पन्न हुआ।
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