________________
उत्कृष्ट क्षमा धारक गजसुकुमार की कथा
श्री उपदेश माला गाथा ५५ किया कि "शुद्ध साधुओं को तीसरी बार गृहस्थ के घर में आहार के लिए आना नहीं कल्पता" किस कारण से आये है इनसे पूछंगी फिर उन्हें भी सहर्ष भिक्षा देने के बाद देवकी रानी ने अंतिम गुट के मुनिद्वय से पूछा- "मुनिवर! क्या प्रत्यक्ष देवलोक के समान इतनी लम्बी-चौड़ी विशाल द्वारिका नगरी के लोगों की धर्मभावना में कमी आ गयी है कि मुनियों को आहारपानी नहीं मिलता; जिससे बार-बार उन्हें यहाँ आना पड़ा? कहीं मेरी भूल हो रही हो तो माफ करना।" मुनियों ने कहा-"महारानी! द्वारकानगरी के लोगों की धर्मभावना में कोई न्यूनता नही आयी, और न ही हम मुनि तुम्हारे यहाँ बार-बार आये हैं। मालूम होता है, पहला और दूसरा मुनिद्वय का गुट भी तुम्हारें यहाँ ही आया है, तुम भूल से प्रथम
और द्वितीय गुट के मुनियों को ही हमें समझ रही हो। वे दूसरे थे, हम दूसरे हैं। महारानीजी! आपको हमारी एक-सी आकृति और एक सरीखा रूप-रंग देखकर एक होने का भ्रम हो गया है। असल में, हम छहों सहोदर भाई है, भद्दिलपुर के नाग गाथापति के पुत्र हैं, हम छहों ने संसार की असारता जानकर भगवान् अरिष्टनेमि से वैराग्यपूर्वक दीक्षा ली है, और आजीवन छट्ठ-छट्ठ (बेले-बेले) तप करते हैं। आज पारणे का दिन था। हम छहों मुनि तीन गुटों में विभक्त होकर भगवान् की अनुज्ञा लेकर द्वारिका नगरी में भिक्षा के लिए पृथक्-पृथक् निकले थे। हम तुम्हारे यहाँ अनायास ही आ पहुँचे हैं।" यह सुनकर देवकी का संशय दूर हो गया। मुनियों के चले जाने के बाद देवकी विचार करने लगी-"कितने सुंदर एक-सरीखे देवपुत्र सम लगते हैं ये छहों मुनि? मैंने तो थोड़ी-सी देर देखा इतने में मुझे पुत्रदर्शन-सा आनंद हुआ। मुझे तो इनका चेहरा कृष्ण-सा प्रतीत होता है। बचपन में एक बार अतिमुक्तक मुनि ने कहा था कि "तुम्हारे ८ अद्वितीय सुंदर पुत्र होंगे, भारतभर में अन्य कोई माता ऐसे पुत्रों को जन्म नहीं दे सकेगी।" परंतु मैं तो प्रत्यक्ष देख रही हूं कि इनके समान सुंदर पुत्र और कौन होंगे? और इन्हें जन्म देने वाली माता को भी धन्य है! मुनि के वचन असत्य नहीं होते। अतः क्यों नहीं भगवान के पास जाकर अपनी शंका का निवारण कर लूं! दूसरे दिन प्रातःकाल देवकी भगवान् अरिष्टनेमि के दर्शनार्थ पहुँची और वंदना करके पूछा"भगवन्! कल मेरे यहाँ छहों मुनि भिक्षा के लिए पधारे थे। उन्हें देखकर मेरे हृदय में अत्यंत वात्सल्य उमड़ने का क्या कारण है? साथ ही उन ६ मुनियों को देखकर मुझे अतिमुक्तक मुनि के कहे हुए भविष्यकथन में कुछ शंका भी पैदा हुई है; कृपा करके आप मेरा समाधान करें।" भगवान्- "देवानुप्रिये! ये छहों तुम्हारे ही पुत्र हैं; जिस समय तुम्हारे पुत्र-प्रसव होता था, उस समय कंस के भय से उनकी रक्षा के
144