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________________ पाला श्री वज्रस्वामी की कथा श्री उपदेश माला गाथा ४८ मुग्ध सुनंदा ने भी संयम अंगीकार किया। वज्रमुनि को योग्य जानकर गुरुदेव ने उन्हें आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। आचार्य वज्रस्वामी को दशपर्यों के जानकार तथा उग्रतपश्चरणरत देखकर उनके पूर्वजन्म के एक मित्रदेव ने उन्हें वैक्रिय लब्धि और आकाशगामिनी विद्या दी। पाटलिपुत्र नगर में ही धनावह नामक एक श्रेष्ठी रहता था। उसके रुक्मिणी नामक एक अत्यंत रूपवती कन्या थी। एक दिन साध्वियाँ वज्रस्वामी के रूप, लावण्य, विद्या, लब्धि आदि गुणों की प्रशंसा कर रही थी। श्रेष्ठिकन्या रुक्मिणी भी उस समय वहीं बैठी यह सुन रही थी। वज्रस्वामी के अनुपम गुणों से मुग्ध होकर रुक्मिणी ने प्रतिज्ञा कर ली-"वज्रस्वामी के सिवाय और किसी से भी मैं शादी नहीं करूँगी।" घर जाकर अपने माता-पिता के सामने भी उसने अपनी प्रतिज्ञा का जिक्र किया। पिता पहले तो बहुत चिन्तित हुआ। लेकिन पुत्री की दृढ़ता देखकर उसने वज्रस्वामी को आकर्षित करने का उपाय सोचा। एक बार अनेक विद्याओं और लब्धियों से सम्पन्न आचार्य वज्रस्वामी विचरण करते हुए पाटलिपुत्र पधारें। नगर की जनता उनके दर्शनों के लिए उमड़ पड़ी। आचार्य वज्रस्वामी ने लब्धिबल से आकर्षक रूप बनाकर प्रभावशाली धर्मोपदेश दिया; जिसे सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो गये और परस्पर प्रशंसा करने लगे-धन्य हो गुरुदेव को! सचमुच इनकी वाणी में जादू है। जैसा इनका भव्य रूप है, वैसी ही भव्य इनकी वाणी है।" प्रवचन सुनकर सभी लोग अपने-अपने घर लौट गये। वज्रस्वामी को देखकर रुक्मिणी ने अपने पिता से अपनी प्रतिज्ञा की बात दुहराई। तब पुत्री स्नेहवश करोड़ों रत्न तथा देवागंनासम उत्तम वस्त्राभूषणों से सुसज्जित अपनी पुत्री को लेकर धनावह सेठ आचार्य वज्रस्वामी की सेवा में पहुँचा। सेठ ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक उनसे निवेदन किया- "भगवन्! प्राणों से भी अधिक प्रिय, सरल और सेवादिगुण-सम्पन्न यह मेरी कन्या है। इसने आपके साथ विवाह करने की प्रतिज्ञा कर ली है। इसीलिए आप इसके साथ पाणिग्रहण करके इसे स्वीकारें और यह रत्नराशि लेकर मुझे अनुगृहीत करें।" आचार्य वज्रस्वामी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया-"देवानुप्रिय! तुम्हारी यह कन्या बहुत ही भोली है, यह साधुजीवन का स्वरूप नहीं जानती; इसीलिए ऐसी प्रतिज्ञा कर बैठी है। आप तो समझते हैं कि हम साधु बन जाने के बाद मन-वचन-काया से पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। संसार की सभी स्त्रियाँ हमारे लिये माता-बहन-पुत्री के समान है। किसी भी सांसारिक स्त्री से हम शादी नहीं करते, हमने तो मुक्तिकन्या के साथ पाणिग्रहण कर लिया है। और फिर मल-मूत्र आदि अशुचि से पूर्ण स्त्री शरीर पर आसक्ति 132
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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