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________________ श्री उपदेश माला गाथा ४८ श्री वज्रस्वामी की कथा अंगशास्त्रों का स्वाध्याय करते समय श्रवण करके उन्हें कण्ठस्थ कर लिया। वज्रकुमार क्रमशः तीन साल का हुआ। अब वह बिलकुल रोता नहीं था; शांत और प्रसन्न रहता था। इस कारण उसका चेहरा भी भव्य और दिव्य तेजस्वी बन गया। वज्र की माता सुनंदा भी प्रतिदिन अपने पुत्र का मुंह देखने के बहाने आया करती थी । पुत्र को अब शांत और दिव्यरूप वाला देखकर वह पुनः मोहविकल हो उठी और उसने धनगिरि से अपने पुत्र को वापिस सौंप देने की मांग की। कहने लगी- " पुत्र मेरा है। मैं ही इसे अपने घर ले जाकर पालूंगी - पोसूंगी । " धनगिरि मुनि ने कहा - "तुमने जब इसे अपने हाथों से मुझे समर्पित कर दिया है, तब मैं इसे तुम्हें वापिस कैसे दे सकता हूँ?" वादविवाद काफी बढ़ गया। फलतः सुनंदा और धनगिरिमुनि दोनों राजदरबार में पहुँचे। राजा ने दोनों पक्ष की बातें सुनकर कहा - "इस पुत्र पर तुम दोनों का समान अधिकार है। परंतु इस विवाद का निर्णय करने के लिए मैंने एक युक्ति सोची है - " तुम दोनों बारी-बारी से इस बालक को अपने पास बुलाओ। बुलाने पर यह बालक जिसके पास चला जाय, उसीका पुत्र समझा जायगा। यही मुझे न्याययुक्त लगता है। " सुनंदा को पहले मौका दिया गया। उसने बालक को बुलाने और अपनी और खींचने के लिए बढ़िया-बढ़िया खाने की वस्तुएँ, विचित्र आभूषण तथा बालक के मन को बहलाने वाले विविध खिलौने आदि सामने सजाकर रखे और वात्सल्यमय मधुर कोमल शब्दों में पुकारा- " वत्स ! आओ, इधर देखो, यह रथ, घोड़ा और हाथी लो; यह लो लड्डू, नारंगी और सेव ! बेटा! देर मत करो, मेरी गोद में आ जाओ।" माता के बार - बार ऐसा कहने पर वज्रकुमार ने जरा भी उसके सामने या खिलौनों व मिठाइयों की और देखा तक नहीं। माता यह देखकर बड़ी दुःखित हो गयी। इसके बाद धनगर मुनि ने रजोहरण दिखाते हुए कहा - " वत्स ! यदि तूं सांसारिक मोहबन्धन से छूटकर आत्मिक सुख को पाने के लिए मुनि दीक्षा लेना चाहता है, तो यह धर्मध्वज्-रजोहरण-ले ले।" यह सुनते ही मोहशृंखला को तोड़ने के लिए तत्पर वज्रकुमार ने तुरंत दौड़कर गुरु महाराज के हाथ से रजोहरण ले लिया और उसे अपने मस्तक पर चढ़ाकर हर्षोत्फुल्ल नेत्रों से नाचने लगा। राजा ने फौरन ही धनगिरि मुनि के पक्ष में फैंसला दे दिया। और बालक वज्रकुमार उन्हें सौंप दिया। वहाँ उपस्थित सभी लोगों को आश्चर्य के साथ प्रसन्नता हुई। सभी कहने लगे"देखो तो सही, तीन साल के बालक के ज्ञान को ! " समस्त संघ सहित मुनिराज वज्रकुमार को लेकर उपाश्रय में आये। क्रमशः ८ साल के होने पर वज्रकुमार को मुनिदीक्षा दी। पुत्र मोह से - 131
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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