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________________ श्री वज्रस्वामी की कथा श्री उपदेश माला गाथा ४८ सुलहो विमाणवासो, एगच्छत्ता वि मेइणी सुलहा । दुल्लहा पुण जीवाणं जिणंदवरसासणे बोहिं ॥५९॥ अर्थात् वैमानिक देव बनना सुलभ है; पृथ्वी पर एकछत्र राज्य (चक्रवर्तित्व) प्राप्त करना भी आसान है, किन्तु जिनेश्वरदेव के श्रेष्ठ शासन में बोधि प्राप्त करना परम दुर्लभ है ॥ ५९ ॥ " परंतु माता के मोहजाल को कैसे छुड़ाया जाय?" इस पर विचार करते-करते वज्र को सहसा एक युक्ति सूझी। माता को हैरान करने के उद्देश्य से वह जोर-जोर से रोने लगा। माता ने उसका रोना बंद कराने के लिए बहुतेरे उपाय किये, पर सब व्यर्थ! ज्यों-ज्यों वह उसे चुप करने का प्रयत्न करती, त्यों-त्यों वह अधिकाधिक रोता जाता । माता के हृदय में बालक के प्रति वात्सल्य भरपूर था, लेकिन बालक के अतिरुदन से वह झुंझला उठती । माता की झुंझलाहट कम होगी तो उसका मोह पुनः जाग उठेगा; इस लिहाज से बालक वज्र ने अपना रोना जारी रखा। इस तरह ६ महीने हो गये। सुनंदा उद्विग्न होकर सोचने लगी कि अगर पतिदेव आ जाएँ तो उन्हें सोंपकर इस बला से छुट्टी पाउं । उन्हीं दिनों सिंहगिरि आचार्य उस गाँव में पधारें। नागरिक लोग उनके दर्शनार्थ आये। आचार्यश्री ने उन्हें धर्मोपदेश दिया। धर्मसभा विसर्जित हो जाने के बाद जब भिक्षापात्र झोली में डालकर धनगिरि मुनि आचार्यश्री से भिक्षार्थ जाने की आज्ञा प्राप्त करने आये तो उन्होंने उनसे कहा - " 'आज भिक्षाचरी में तुम्हें सचित्त या अचित्त जो भी मिले, ले आना।" गुरु की आज्ञा शिरोधार्य कर धनगिरि भिक्षा के लिए गाँव में गये। भिक्षाटन करते-करते वे सुनंदा (पूर्वाश्रम की पत्नी) के यहाँ पहुँच गये, उसे धर्मलाभ कहा। सुनंदा ने सबसे पहले उन्हें यही कहा - "स्वामिन्! अपने पुत्र को ले जाओ। इसने तो मुझे परेशान कर दिया; एक क्षण के लिए भी चुप नहीं रहता, जब देखो तब दिन-रात रोता रहता है। " धनगिरि मुनि को गुरुदेव की आज्ञा का स्मरण हो आया। उन्होंने किसी प्रकार की अनाकानी किये बिना सुनंदा से पुत्र को भिक्षा रूप में लेकर अपनी झोली में रख लिया। वहाँ से वे सीधे झोली में वज्रकुमार को उठाये हुए उपाश्रय में आये और गुरुदेव को भिक्षा में प्राप्त बालक दिखाया। वज्र के समान बालक में भार और तेज होने से गुरुदेव ने उसका नाम वज्रकुमार रखा। दीक्षा योग्य उम्र न होने से आचार्यश्री ने वज्रकुमार को साध्वियों के उपाश्रय में भिजवा दिया। वहाँ अनेक श्राविकाएँ आती थीं, वे इसकी सेवा करने लगीं। वहाँ पालने में सोते-सोते वज्रकुमार ने साध्वियों के मुख से ११ 130
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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