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________________ श्री उपदेश माला गाथा ३८ अतिरौद्र चिलातीपुत्र की कथा हो गया। एक क्षण भी वे दोनों स्वयं को एक दूसरे से अलग नहीं देख सकते थे। दोनों युवा थे और बार-बार एक-दूसरे से एकान्त में मिला करते। सेठ ने चिलातीपुत्र को सुसुमा से एकान्त में मिलने और बात करने से मना भी किया, लेकिन वह न माना। एक दिन सुसुमा के साथ चिलातीपुत्र को कामचेष्टा करते देख कर धनावह सेठ ने विचार किया- 'यह दासीपुत्र दुर्व्यसनी, शराबी, झगड़ालू और अनाचारी हो गया है, इसीलिए अब इसे अपने घर में एक दिन भी रखना ठीक नहीं।' फलतः उसे अपमान पूर्वक घर से निकाल दिया। उसकी मां पहले ही मर गयी थी। मन में भयंकर प्रतिक्रिया जागी। सभ्य कहलाने वाले समाज से उसे नफरत हो गयी। वह ऐसे समाज में रहना चाहता था, जहाँ उसे सब प्यार करें। ढूंढते-ढूंढते वह एक दिन चोरपल्ली में पहुँच गयावहाँ कुछ ही दिनों में वह चोरों के साथ घुलमिल गया और चोरी करने में निपुण हो गया। सभी चोरों ने चिलातीपुत्र को अतिसाहसिक जानकर पल्लीपति (सरदार) बना दिया। उसकी हिंमत इतनी बढ़ गयी थी कि भयंकर से भयंकर पापकर्म; बल्कि किसी की हत्या तक करने मेंवह जरा भी नहीं हिचकिचाता था। परंतु यहाँ आने पर भी सुसुमा उसके मन से गयी नहीं थी। एक दिन उसने पल्ली के सब चोरों को एकत्रित करके कहा- "भाईयो! आज हम धनावह शेठ के यहाँ चोरी करने चलेंगे। वहाँ जो भी माल मिले, वह तुम सबका; सिर्फ सुसुमा मेरी।" सबने यह शर्त मंजूर कर ली और शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर सभी चोर चिलातीपुत्र के नेतृत्व में राजगृह नगर में सीधे धनावह सेठ के महल में जा धमके। उनका अप्रत्याशित आगमन देख सब भौंचक्के रह गये। सुसुमा उस समय विवाह के वस्त्राभूषण पहने एक कोने में दुबकी हुई बैठी थी। अन्य सभी चोर धनमाल बटोरने में लग गये और चिलातीपुत्र सीधे सुसुमा के पास पहुँचा। उसने सुसुमा को उठाया और वहाँ से भागा। अन्य चोर धनमाल की गठड़ियाँ बांधकर उठाये हुए दौड़े। सेठ ने यह देखकर शोर मचाया। दुर्गपाल को इस दुर्घटना की खबर दी गयी। तुरंत कई विकट योद्धाओं को साथ लेकर उसने चोरों का पीछा किया। सेठ भी अपने पुत्रों को लेकर दुर्गपाल के साथ चल पड़ा। आगे-आगे चोर और पीछे-पीछे दुर्गपाल, उसके साथी और सेठ का परिवार! चोरों के सिर पर गठड़ियों का बोझ होने से उनके लिये फुर्ती से चलना कठिन हो गया। कई चोरों ने गठड़ियों को जमीन पर मार गिराया। दुर्गपाल वगैरह अन्य चोरों से निपटने में लगे थे कि चिलातीपुत्र सुसुमा को लेकर उन सबकी आँख बचाकर दूसरी दिशा में भागा। धनावह शेठ ने देख लिया। 'धन की रक्षा के लिए तो = 109
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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