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________________ श्री उपदेश माला गाथा ३७ जम्बूस्वामी की कथा "भरतक्षेत्र में लक्ष्मीपुर नगर में नयसार नामक राजा राज्य करता था। उसे संगीत, कथाएँ, नाटक, पहेलियाँ, अन्त्याक्षरी आदि सुनने का बहुत शौक था। वह हमेशा कोई न कोई नयी कहानी सुनने का आदि था। इस नवीनकथारसिक राजा ने एक दिन नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि "नगर के सभी लोग बारी-बारी से रोजाना राजा के पास आकर नयी कहानी सुनाएँ।" इससे प्रेरित होकर लोग अपनी नयी कहानी गढ़कर प्रतिदिन राजा को सुना आते। एक दिन एक ब्राह्मण की बारी आयी। वह अत्यंत मूर्ख था, इसीलिए उसे कथा कहनी नहीं आती थी। परंतु उसको एक कन्या थी, जो बहुत चतुर थी। उसने अपने पिता से कहा-"पिताजी! आप निश्चिंत रहिये। आपके बदले में राजा को कहानी सुना आऊंगी।" फलतः वह राजा के पास गयी। राजा ने उससे कहा-"कोई ऐसी कहानी कहो, जिससे मेरा मनोरंजन हो।" ब्राह्मणीपुत्री ने कहा-"महाराज! आज मैं आपको अपने अनुभव की कथा कहूँगी, जिससे आपको बड़ी प्रेरणा मिलेगी। सुनिए- "मैं बचपन बिताकर जब जवान हुई तो मेरे माता-पिता ने एक सुकुलोत्पन्न ब्राह्मण-पुत्र के साथ मेरी सगाई कर दी। जिसके साथ मेरी सगाई हुई थी, वह भावी-पति मुझे देखने और मिलने के लिए मेरे पिता के यहाँ आया। उस समय मेरे माता-पिता खेत पर गये हुए थे; घर में मैं अकेली ही थी। फिर भी मैंने उसका स्नान-भोजन आदि से उचित सत्कार करके उसे संतुष्ट किया। परंतु वह तो मेरा अद्भुत रूप-लावण्य देखकर कामातुर हो गया और अपनी कामवासना को तृप्त करने के इरादे से पलंग पर बैठा-बैठा अंगड़ाई लेने लगा। प्रणयरसभरी मीठी-मीठी गुदगुदाने वाली बातें करने लगा और बार-बार मेरी ओर ताककर इशारे करने लगा। मैं उसकी चेष्टाओं से उसके मनोभावों को ताड़ गयी। मैंने उससे कहा-"स्वामिन्! इतनी उतावली न करो। शादी हुए बिना विषयवासना-सेवन के कार्य नहीं हुआ करते। आदमी अत्यन्त भूखा हो तो भी क्या दोनों हाथों से खाता है? इसीलिए आपकी इस समय विषयसेवन की भावना समयोचित नहीं है।" परंतु वह अत्यंत कामज्वर से पीड़ित था, इसीलिए उसके पेट में एकाएक शूलरोग पैदा हुआ; और देखते ही देखते उसने वहीं दम तोड़ दिया। मैंने सोचा- "इसे यहाँ मरा हुआ देखकर लोग मुझ पर दोषारोपण करेंगे, इसीलिए मैंने उसके शव को वहीं गड्ढा खोदकर झटपट गाड़ दिया। किसी को उस बात का पता तक न लगा। न मेरे माता-पिता ही जान पाये।" "राजन्! मैंने आपको मेरे नैतिक व्यवहार की अनुभवयुक्त कथा सुनाई है। आशा है, आपको पसंद आई होगी।" इस अनुभवपूर्ण कथा को सुनकर कल्पित कहानियों से ऊबा हुआ राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ। राजा से ईनाम पाकर वह ब्राह्मण - 101
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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