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________________ श्री उपदेश माला गाथा ३७ जम्बूस्वामी की कथा घोड़े की तरह कदापि उन्मार्ग पर कदम नहीं बढ़ाऊंगा। जातिवान घोड़ा कैसा होता है, सुनो-वसंतपुर नगर में जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था। उसके पास एक सुलक्षण सम्पन्न जातिवान घोड़ा था। राजा ने एक बार जिनदास श्रावक के यहाँ उसे धरोहर के रूप में रख दिया था। चोर-पल्लीपति (चोरों के सरदार) को किसी समय पता लगा कि जिनदास के यहाँ एक जातिवान घोड़ा है तो उसने उस घोड़े को वहाँ से चुरा लाने के लिए अपने सेवक को भेजा। सेवक जिनदास के यहाँ पहुँचा और उसने दीवार में सेंध लगाकर उस घोड़े को बाहर निकाला। लेकिन ज्यों ही घोड़े को आगे चलाना चाहा तो वह समझ गया कि यह मुझे उन्मार्ग में ले जाना चाहता है। अतः घोड़ा वहीं ठिठक गया। एक कदम भी आगे न बढ़ा। उस सेवक ने बहुत जोर लगा लिया, लेकिन घोड़ा अपने स्वभाव का इतना पक्का था कि राजमार्ग को छोड़कर अन्य मार्ग पर चलने के लिए जरा भी तैयार न हुआ। यों रस्साकस्सी होते-होते जिनदास सेठ जाग गया। उसे घोड़े को चुराकर ले जाने के लिए आमदा चोर-सेवक का पता लगा। उसने रंगे हाथों फौरन चोर को पकड़ा और अपना घोड़ा छुड़ा लिया। बाद में चोर-सेवक द्वारा माफी मांगने पर उसे भी सेठ ने छोड़ दिया। प्रिये! इसी प्रकार मैं भी उस जातिवान घोड़े के समान शुद्ध संयम रूपी राजमार्ग को छोड़कर चोर जैसी तुम्हारे द्वारा आकर्षित भी उन्मार्ग में कदापि नहीं जाऊंगा।" इस पर उनकी छट्ठी पत्नी कनकश्री ने कहा- "स्वामिन्! आपका अत्यन्त हठ (जिद्द) करना योग्य नहीं है। बुद्धिमान् पुरुष को दूरदर्शी बनकर भविष्य का भी विचार करना चाहिए; उस ब्राह्मणपुत्र की तरह गधे की पूंछ पकड़े नहीं रहना चाहिए।" बीच में ही प्रभव ने पूछा- "बहनजी! वह ब्राह्मणपुत्र कौन-था, जिसने गधे की पूंछ पकड़कर छोड़ी नहीं?" कनकधी कहने लगी "एक गाँव में एक ब्राह्मण का लड़का था। वह बड़ा मूर्ख और जिद्दी था। उसकी मां उसे सदा कहा करती थी- "बेटा! जिस वस्तु को पकड़ो, उसे छोड़ना नहीं चाहिए।" मूर्ख ने मन में इस बात की गांठ बांध ली। एक दिन किसी कुम्भार का गधा उसके घर से छूटकर भागा जा रहा था। कुम्भार उसे पकड़ने के लिए पीछे-पीछे भाग रहा था। कुम्भार ने वहाँ इस मूर्ख ब्राह्मणपुत्र को देखकर जोर से आवाज दी-"अरे भाई! इस गधे को पकड़ लेना।" ब्राह्मणपुत्र ने झट दौड़कर गधे की पूंछ पकड़ ली। गधा अपने स्वभाव के अनुसार दुलत्ती झाड़ने लगा। मगर पकड़ी हुई पूंछ छोडें वे दूसरे! लोगों ने इस मूर्खराज को बहुतेरा कहा- "मूर्खराज! गधे की पूंछ छोड़ दे।" पर उसने सबको करारा - 97
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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