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जम्बूस्वामी की कथा
श्री उपदेश माला गाथा ३७ यह सुनकर नभसेना नाम की पाँचवी पत्नी बोली- "स्वामिन्! अतिलोभ नहीं करना चाहिए। अतिलोभ से तो सिद्धि और बुद्धि की तरह मनुष्य की अक्ल मारी जाती है। लो सुनो, मैं वह किस्सा सुनाती हूँ। किसी गाँव में सिद्धि और बुद्धि नाम की दो बुढ़ियाएँ रहती थीं। दोनों बड़ी गरीब थीं। बुद्धि बुढ़िया प्रतिदिन प्रातःकाल भोलकयक्ष की आराधना किया करती थी। उसकी भक्ति देखकर यक्ष प्रकट होकर बोला- "मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूँ। यथेष्ट वर मांग ले।" बुद्धि ने कहा- "देव! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो यह वरदान दीजिए कि मुझे पेटभर रोटी मिल जाया" यक्ष ने कहा-'रोजाना मठ के पीछे से खोदकर एक स्वर्णमुहर ले जाया करना।" बुद्धि प्रतिदिन ऐसा ही करने लगी। इस प्रकार वह सुख से जिंदगी बिताने लगी। सिद्धि के मन में बुद्धि का सुखी जीवन देखकर ईर्ष्या पैदा हुई। उसने कपट पूर्वक चिकनी चुपड़ी बातें बनाकर बुद्धि से सुखी होने का रहस्य जान लिया और वह भी उसी तरह बल्कि उससे भी बढ़कर उस यक्ष की सेवाभक्ति करने लगी। भोलकयक्ष ने एक दिन प्रसन्न होकर उसे वर मांगने का कहा। सिद्धि ने यही वर मांगा कि "मुझे बुद्धि से दुगुना मिला करे।" फलतः उसे प्रतिदिन दो स्वर्णमुहरें मिलने लगीं। थोड़े ही दिनों में सिद्धि बुद्धि से अधिक धनाढ्य हो गयी। यह देखकर बुद्धि ने पुनः यक्ष की आराधना करनी शुरू की। वह अब घंटों यक्ष की सेवापूजा में बिताने लगी। इससे यक्ष ने प्रसन्न होकर फिर उसे वर मांगने का कहा। इस बार बुद्धि ने सोचा- "इस बार मुझे ऐसा वर मांगना चाहिए, जिससे सिद्धि का अनिष्ट हो।" उसने कुछ क्षण विचार कर यक्ष से कहा-"देव! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हों तो मुझे यही वर दीजिए कि मेरी एक आँख फूट जाय।" यक्षराज ने भी उसकी इच्छानुसार कर दिया। सिद्धि को जब यह पता लगा कि बुद्धि ने यक्ष की फिर आराधना की है और कुछ प्राप्त किया है, तो ईर्ष्यावश वह भी तीसरी बार फिर यक्ष की आराधना में जुट पड़ी। यक्ष ने जब प्रसन्न होकर वर मांगने का कहा तो उसने इस प्रकार से वरयाचना की-"आपने सिद्धि को जो कुछ दिया है, मुझे वही चीज दुगुनी दें। यक्ष के 'तथाऽस्तु' कहते ही सिद्धि की दोनों आँखें फूट गयी। सच है, देववचन व्यर्थ नहीं जाते। इसीलिए हे प्राणनाथ! जिस तरह सिद्धि ने प्रथम प्राप्त सम्पत्ति से संतुष्ट न होकर अतिलोभ वश अपनी भारी हानि कर ली, उसी तरह आप भी पूर्वकृत पुण्यप्रभाव से प्राप्त सुखसम्पदा से अतृप्त होकर अधिक सुख की लालसा करके हानि उठायेंगे।".
यह सुनकर जम्बुकुमार ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए कहा- "प्रिये! तुम्हारे कथन के अनुसार उन्मार्ग गामी वही होता है, जो जातिवान न हो। मैं उस जातिवान
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