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________________ श्री उपदेश माला गाथा ३७ जम्बूस्वामी की कथा ५. मेरा चाचा भी लगता है, ६. एक रिश्ते से तूं मेरा पौत्र भी है। हे वत्स ! इसी तरह तेरे पिता के साथ भी मेरे ६ नाते हैं - १. वह मेरा पति है, २. मेरा पिता भी लगता है, ३. मेरा बड़ा भाई भी है, ४. एक रिश्ते से मेरा पुत्र भी है, ५. मेरा श्वसुर भी लगता है और ६. मेरा पितामह ( दादा ) भी लगता है। और इसी तरह तेरी माता के साथ भी मेरे ६ नाते हैं - १. वह मेरे भाई की पत्नी होने से भाभी भी लगती है, २. मेरी सौत भी है, ३. मेरी माता तो है ही, ४. मेरी सास भी लगती है, मेरी पुत्रवधू भी है और ६. मेरी मातामही ( दादी) भी है। " कुबेरदत्ता ने साध्वीजी के मुख से जब इन १८ रिश्तेनातों का वर्णन सुना तो भौंचक्की हो गयी और ग्लानि से सिहर उठी। उसने तत्काल ही इस पापमय जीवन को और निःसार विषयभोगों की आसक्ति को छोड़ने का निश्चय कर लिया। फलतः उसने साध्वीजी से व्रत ग्रहण किये और सांसारिक मोहसागर से पार उतरी। इसीलिए . प्रभव! ऐसे रिश्तेनाते (सम्बन्ध) तो संसार में अनन्त बार जुड़े हैं और जुड़ेंगे। अब मुझे धर्म और धर्मावतारों से ही सम्बन्ध जोड़ना है, क्योंकि वे ही वास्तविक सुखदाता, आत्मरक्षक परमबन्धु हैं। " यह सुनकर प्रभव ने फिर कहा - "जम्बूकुमार ! यह तो ठीक है। परंतु पुराणों में कहा है- 'जिसके पुत्र नहीं होता, उसकी सद्गति नहीं होती; इसीलिए कम से कम कुछ समय तक गृहस्थाश्रम का सुखभोग करके पुत्रोत्पत्ति हो जाने पर ही संयममार्ग पर कदम रखना चाहिए।" जम्बूकुमार ने उत्तर दिया- ऐसा कोई नियम नहीं है कि पुत्र होने पर ही मनुष्य को सद्गति मिले, अन्यथा दुर्गति में जाना पड़े। यह तो सांसारिक लोगों की मोह जनित भ्रान्ति है। कई लोगों के पुत्र हो जाने पर भी उनकी सद्गति तो क्या यहीं बड़ी भारी दुर्गति होती है, जैसे महेश्वरदत्त की हुई। महेश्वरदत्त के पुत्र होने पर भी वह उसके किसी काम नहीं आया। " प्रभव ने पूछा - "जम्बूकुमारजी ! यह महेश्वरदत्त कौन था? जरा विस्तार से कहिए ।" जम्बूकुमार कहने लगे - " विजयपुर में महेश्वरदत्त नामक एक सेठ रहता था। उसके महेश्वर नामक इकलौता पुत्र था। महेश्वरदत्त ने अपनी मृत्यु के समय अपने पुत्र को पास बुलाकर कहा—''बेटा! जिस दिन मेरा श्राद्ध करो, उस दिन एक भैंसा मार कर उसके मांस से सारे परिवार को तृप्त करना । " महेश्वर ने स्वीकार किया। महेश्वरदत्त की एक दिन मृत्यु हो गयी। वह मरकर जंगली भैंसा बना । पुत्र ने पिता के अंतिम समय के वचन याद रखें। कुछ दिनों बाद महेश्वर की माता भी मर गयी । घर में अत्यंत आसक्ति होने से वह मरकर उसी घर में कुतिया बनी। महेश्वर की पत्नी व्यभिचारिणी थी। महेश्वर ने अपनी पत्नी के साथ उसके यार को रतिक्रीड़ा 88
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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