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________________ श्री उपदेश माला गाथा ३७ जम्बूस्वामी की कथा ही सार है।" प्रभवचोर - "एक ही जन्म में १८ रिश्तेनाते ( सम्बन्ध) कैसे जुड़े ? जरा इसे विस्तार से खोल कर कहिए ।" जम्बूकुमार कहने लगे " मथुरा नगरी में कुबेरसेना नाम की एक वेश्या रहती थी। एक बार उसके पुत्र और पुत्री का जोड़ा पैदा हुआ। पुत्र का नाम कुबेरदत्त और पुत्री का नाम कुबेरदत्ता रखा। वेश्या ने अपने किसी स्वार्थवश दोनों को नामांकित (नाम खुदी हुई) अंगूठी अंगुली में पहनाकर एक पेटी में रखकर उसे यमुनानदी में बहा दी। वह पेटी नदी में बहती हुई शोरीपुर के पास पहुँची। वहाँ के दो सेठों ने उस पेटी को देखकर बाहर निकाली। पेटी खोली तो उसमें वे दोनों लड़का-लड़की मिले। फलतः उन दोनों सेठों में से एक ने लड़का रख लिया और एक ने लड़की रख ली। दोनों का पालन-पोषण दोनों सेठों के यहाँ होने लगा। जब वे दोनों जवान हो गये तो देवयोग से दोनों सेठों ने परस्पर बातचीत करके उन दोनों का परस्पर विवाह कर दिया। दोनों सगे भाई-बहन अब पति-पत्नी हो गये। एक दिन वे दोनों चौपड़ (पाश) खेल रहे थे; तभी अचानक कुबेरदत्ता की दृष्टि कुबेरदत्त (पति) की नामांकित अंगूठी पर पड़ी। उस पर 'कुबेरदत्त' नाम लिखा हुआ देखकर कुबेरदत्ता ने सोचा - "यह तो मेरा भाई है। हाय! हाय!! मैंने यह क्या अनर्थ कर डाला! सगे भाई के साथ दाम्पत्य - सम्बन्ध ! अहो ! संसार के मोह और विषयासक्ति की बड़ी प्रबलता है।" इस प्रकार विचार करते-करते कुबेरदत्ता को संसार से विरक्ति हो गयी। उसने एक चारित्रशीला साध्वीजी से साध्वीदीक्षा ले ली। शास्त्रों का अध्ययन किया, तपश्चर्या की । ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होने से उस साध्वी को अवधिज्ञान प्राप्त हो गया। इधर कुबेरदत्त किसी कार्यवश एक दिन मथुरा गया था। वहाँ कुबेरसेना वेश्या (जो उसकी माता थी) के प्रेम में फंस गया। दोनों के संयोग से एक पुत्र हुआ | कुबेरदत्ता साध्वीजी को अवधिज्ञान से ज्ञात हो गया कि "यह तो अनर्थ पर अनर्थ हो रहा है। माता और पुत्र के संयोग से सन्तानोत्पत्ति ! मेरा कर्तव्य हो जाता है कि मैं इस समय मथुरा जाकर कुबेरदत्त और कुबेरसेना दोनों को समझाऊँ। साध्वी उन्हें प्रतिबोध देने के लिए मथुरा पहुँची । और कुबेरसेना के यहाँ ठहरी । जिस समय वह बालक रोने लगा, उस समय साध्वीजी प्रतिबोध का उचित अवसर जानकर उस बालक के पालने के पास आकर उसे सम्बोधित कर कहने लगी"अरे बालक! क्यों रो रहा है? चुप रह भाई ! तूं मुझे प्रिय है; क्योंकि तेरे साथ मेरे ६ रिश्तेनाते ( सम्बन्ध ) हैं - १. तूं मेरा पुत्र भी लगता है, २. तूं मेरे भाई का भी पुत्र है, ३. तूं मेरा भाई भी लगता है, ४. तूं मेरा देवर भी लगता है, ५. तूं 87
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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